- (१८४) सुरसागर। धावत । किलकत कान्ह देखि यह कौतुक हरषि सखा उरलावत ॥ भलीकरी तुम मोको ल्याए मैया हरषि पठाए । गोधन वृंदलिये ब्रजबालक यमुनातट पहुँचाए ॥ चरति धेनु अपने अपने रंग अतिहि सघन वनचारो। सूर संग मिलि गाइ चरावत यशुमतिको सुतवारो॥ २२ ॥ देवगंधार द्रुमचढि काहे नटेरौ कान्हा गइयां दूरिगई ।पाई जात सबनके आगे जे वृपभान दईघिरे न पिरत तुम विनु माधव जू मिलत नहीं वगदई ॥ विडरत फिरत सकल बनमहियां येकइ येक भई ।। छाडि खेल सब दूरि जातहै वोलौ जो सके थोककई । सूरदास प्रभु प्रेम समुझिके मुरली सुनत सब आइ गई॥२३॥ मारू ॥ कहि कहि बोलत धौरी कारी। देखो धन्य भाग्य गाइनके प्रीतिकरत बनवारी ॥ मोटीभई चरत वृंदावन नंदकुअरकी पाली ॥ काहेन दूध देहि ब्रजपोपन हस्तकमलके लाली । वैन श्रवन सुनि गोवर्धनते तृणदीन्हो धरि चाली। तवहीं वेगि आइ सूरको प्रभुपैते क्यों भजे जेपाली ॥२४॥ कल्याण ॥ जब सब गाइ भई एक ठाई । ग्वालन घरको घेरि चलाई ॥ मारग में तब उपजी आग । दशह दिशा जरन सब लाग॥ग्वाल डरापि हरि शरणै आये। सूरराखि अर त्रिभुवन राय॥२५॥गौरी साँवरो मनमोहन माई। देख सखी बनते ब्रज आवत सुंदर नंदकुमार कन्हा ई ॥ मोरपंख शिर मुकुट विराजत मुखमुरली सुर सुभग सोहाई । कुंडल लोल कपोलनिकी छवि मधुरी बोलनि वरणि नजाई ॥ लोचन ललित ललाट भ्रुकुटि विच ताकि तिलककी रेखबनाई। मानौ मर्याद उलंघि अधिक बल उमॅगिचली अति सुंदरताई ।। कुंचितकेश सुदेशवदनपर मानौ मधुपनि माल फिरिआई । मंदमंद मुसुकात मनौ घन दामिनि दुरि दुरि देत दिखाई ॥ सोभित सूर निकट नासाके अनुपम अधरनिकी अरुनाई । मानौं शुक सुरंग विलोकि विवफल चाखन कारन चोच चलाई ॥२६॥ देखौरी नंदनंदन आवत । वृंदावनते धेनु वृंदमें बेनु अधर धरेगावत। तनुघनश्याम कमलदल लोचन अंग अंग छबिपावत । सुरभीकारी गोरी धूमरी धौरी लैलै नाम बुलावता संग बाल गोपाल संग सब सोभित मिलि कर पत्र बजावत ॥ सूरदास मुख निरखतही सुख गोपी प्रेम बढ़ावत ॥ २७ ॥ रजनीमुख बनते बने आवत भावत मंद गयंदकी लटकान। बालकवृंद विनोद हँसावत करतल लकुट धेनुकी हटकनि ॥ विगसत गोपी मनो कुमुद सर रूप सुधा लोचन पुटघटकनि । पूरणकला उदित मनौ उडुपति तेहिछिन विरहव्यथाकी चटकनि ॥ लज्जितमन्मथ निरखि विमलछवि रसिकरंग भौंहनकी मटकनि । मोहनलाल छबीलो गिरिधर सूरदास बलि नागरनटकनि ॥ २८ ॥ गोचारन ॥ विलावल ॥ जागिए गोपाललाल प्रगटभई हंसमाल मित्यो अंधकाल उठौ जननी मुख दिखाई । मुकुलित भए कमलजाल कुमुदद बनबिहाल मेटहु जंजाल विविध ताप तन नशाई । ठासव सखाद्वार कहत नंदके कुमार टेरतहैं वारवार आइये कन्हाई । गैयनि भई बड़ीवार भरिभरि पैथननि भार बछरागन करें पुकार तुम विनु यदु- राई ॥ ताते यह अटकपरी दुहुँनकाज सौंह करी उठि आवहु क्यों न हरी बोलत बलभाई। मुखते पट झटकि डारि चंद्रवदन देउघारि यशुमति बलिहारि वारिजलोचन सुखदाई ॥ धेनुदुहन चले धाइ रोहिणी तब लै बुलाइ दोहनी मुहिदै मगाइ तवहीं लैआई।बछरा थन दियो लगाइ दुहत बैठिकै कन्हाइ हँसतनंदराइ तहां मात दोउ आई ॥ दोहानि कहुं दूधधार सिखवत नंद बार बार यह छवि नहिं वार पार नंद घर बधाई । तब हलधर कह्यो सुनाइ गाइन बन चलौ लिवाइ मेवा लीनो मँगाइ विविधरस मिठाई । जेंवत बलराम श्याम संतनके सुखदधाम धेनुकाज नहिंविश्राम यशुदाजल ल्याई ॥ श्याम राम मुखपखारि. ग्वालबाललिये हकारि यमुनातट मनविचारि गाइन हँकराई।शृंग, -
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