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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र।


विट्ठलनाथ विशुनाथ कवि, पद्मनाभ परवीनै । भगवनदास मनोहर,परमानन्दैनवीन ॥१३॥ माणिकचंद निहलकवि,मुकुॅंद मुबारक वीरें ।देव दिनेशनदान कवि,तेही तोपी न धीर१४ श्रीपति यद्यपि भक्तिमें, न्यून न कछुकलखाता।तद्यपिकवितामें कहो,समताकछु न दिखात१५ विद्यापति आदिक कविन, जितने भये सुनान।काव्य भावमें सूरसम, तुलसी * एकप्रमान॥

चौरासीवार्ता बालकृष्णजीसे ।

अव श्री आचार्यजी महाप्रभूनके सेवक सूरदासजी गऊघाट ऊपर रहते तिनकी वार्ता ।

सो एकसमय श्री आचार्यजी महाप्रभु अंडेलते ब्रजको पाउँ धारे सो कितनेक दिनमें गऊघाट आये सो गऊघाट आगरे और मथुराके बीचा बीच है तहां श्री आचार्य जी महाप्रभू पांवधारे सो गऊघाट ऊपर श्री आचार्य जी महाप्रभू उतरे तहां श्री आचार्य जी महाप्रभू स्नान करिके संध्यावंदन करिके पाककरन को बैठे और श्री आचार्य जी महाप्रभूनके सेवकन को समाज बहुत हुतो और सेवकहू अपने अपने श्री ठाकुर जी की रसोई करन लगे सो गउघाट ऊपर सूरदास जीको स्थल हुतो सो सूरदास जी स्वामी हैं। आप सेवक करते सूरदास जी भगवदीय है गान बहुत आछो करते ताते बहुत लोग सूरदासजीके सेवक भयेहुते सो श्री आचार्य जी महाप्रभू गऊघाट ऊपर उतरे सो सूरदास जीके सेवक देखके सूरदास जींसों जाय कही जो आज श्री आचार्य जी महाप्रभू आप पधारे हैं जिनने दक्षिणमें दिग्विजय कियो है सब पंडितनको जीते हैं भक्तिमार्ग स्थापन कियो है सो श्री वल्लभाचार्य यहाँ पधारे हैं तब सूरदास जीने अपने सेवकन सों को जो तू जायके दूर बैठि जब आप भोजन करिके विराजें तब खबर करियो हम श्री आचार्य जी महाप्रभूनके दर्शनको जायगे सो वह तनक दूर जाय वैव्यो तब श्री आचार्य जी महाप्रभू आप पाक करत हुते सो पाक सिद्धि भयो तब श्री ठाकुर जीको भोग समप्यों पाछे समयानुसार भोग सराय अनोसर करके महाप्रसाद ले के श्री आचार्य जी महाप्रभू गादी ऊपर विराने तहां सब सेवकहू पहुँचिके श्री अचार्यजी महाप्रभुन के आसपास आय वैठे तब वह सूरदासको सेवक आयो सो सूरदास सों कही जो श्री आचार्यजी महाप्रभू-विराजे हैं तब सूरदास जी अपने स्थल ते आय के श्री आचार्य जी महाप्रभून के दर्शन को आये तब श्री आचार्य जी महाप्रभून ने कह्यो जो सूर आवो वैठो तब सूरदास जी श्री आचार्य जी महाप्रभून को दर्शन करि के आगे आय वैठे तव श्री आचार्यजी महाप्रभूनने कह्यो जो सूर कछु भगवत् यश वर्णन करो तव सूरदासने कही जो आज्ञा तव सूरदास जी ने श्री आचार्य जी महाप्रभून के आगे एक पद गायो सो पद।

राग धनाश्री-हो हरि सब पतितन को नायक ॥ को कार सके बराबर मेरी इते मानको लायक ॥१
जोतुमअनोमलसोंकीनी जोपाती लिखपाळीहोयविश्वास भलोजिय अपने औरह पतित बुलाऊंर
सिमिट जहां तहां तेसव कोऊआय जुरे एकठौर।अबके इतने आन मिलाऊं बेर.दूसरी और ॥३
होडा होठी मन हुलास करि करे पाप भरिपेट ॥ सवहिनले पायन तर परिहों यही हमारी भेट।


९९-प्रवीनराय पातुरी। १००-भगवानदास

  • क वाळे कवियोंका भागे वर्णन क्रिया नायगा ।