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(१२८) सूरसागर। सम सार ताहि ॥ कटि निरखि केहरि लजाने रहे वन घन चाहि । हृदय हरि नख अति विराजति छबि न वरनी जाइमनौं बालक वारिधर नव चंद्र लई छपाइ । मुकुतमाल विसाल उरपर कछ कहौं उपमाइ । मनौं तारागगन पृष्टित गगनरह्यो छपाइ।अधर अरुन अनूप नासा निरखि जन सुखदाइ मनौ शुकफल विंव कारन लेन बैठो आइ॥ कुटिल अलक विना विपिनके मनौं अलि शशि जाल । सूर प्रभुकी ललित सोभा निरखिरहि ब्रजवाल ॥६॥सारंगा न्हात नंद सुधि करी श्यामकी ल्यावह बोलि कान्ह बलराम । खेलत कान्ह वार बडि लागी बज भीतर काहूके धाम ॥ मेरे संग आई || दोउ बैठे उन विनु भोजन कौने काम । यशुमति सुनत चली आतुरकै ब्रज घर घर टेरत लैनाम॥ | आजु अवर भई कहुँ खेलत वोलि लेहु हरिको कोउ वाम । ढूंढिफिरी नहिं पावत हरिको अति अकुलानी आवतधाम ॥ वारवार पछिताति यशोदा वासर वीतिगए युगयाम । सूरझ्यामको कहूँ नपावत देखे बहु बालक इकठाम ॥ ६॥ सारंग ॥ कोउ माई वोलि लेहु गोपालहि । मैं अपनेको पंथ निहारति खेलत वेरभई नंदलालहि ॥ हेरत वेर वडी भई मोकहुँ नहिं पावत घनश्याम।।तमा लहि । सिध जेवन सिरात नंद बैठे ल्यावहु वोलि कान्ह ततकालहि। भोजन करहिनंद संग मिलि कै भूखलगी वैहै मेरे बालहि।।सूरश्याम मग जोवति यशोदा आइगए सुनि वचन रसालहि॥७॥राग नटनारायण।।हरिको टेरतहै नँदरानी बहुत अवार कतहुँ खेलत भइ कहाँ रहे मेरे सारंगपानी।।सुनतहि टेरदौरि तहाँ आए कबके निकसे लाल । जेंवत नहीं नंद जूतुम विनु वेगि चलो गोपाल॥श्यामहि ल्याई महरि यशोदा तुरतहि पाइपखारे। सूरदास प्रभु संग नंदके बैठेहैं दोउ बारे ॥८॥ सारंग ॥ जेंवत श्याम नंदकी कनिया। कछुक खात कछु धरणि गिरावत छवि निरखत नंदरनियां ॥ वरी वरां-बेसन बहु भांतिन व्यंजन विविध अनगनियां । डारतखात लेत अपने कर रुचि मानत दधि दनियां ।। मिश्री दधि माखन मिश्रित करि मुख नावत छवि धनियां । आपुन खात नंदमुख नावत सो सुख कहत नवनियां ॥ जो रसनंद यशोदा विलसत सो नहिं तिहूं भुवनियां । भोजन करि नंद। अचवन कियो मागत सूर जुठनियां ॥९॥ कान्हरो ॥ बोलि लेहु हलधर भैया को। मेरे आगे खेल। करौ कछु नैननि सुख दीजै मैयाको।मैंमूदौं हरि आँखि तुम्हारी बालक रहे लुकाई । हरपि श्याम सब सखा वुलाए खेलो ऑखि हुँदाई ॥ हलधर कहै आंखिको मूंदै हरि कह्यो जननी यशोदा। सूर श्याम लिए जननी खेलावति हर्ष सहित मन मोदा ॥ १०॥ गौरी ॥ हरि तब आपनि आंखि मुदाई सखा सहित बलराम छपाने जहां तहां गए भगाई।काल लागि कहेउ जननी यशोदा वा घर में बल राम । बलदाऊको आवन देहौं श्रीदामासोहै काम ॥ दौरि दौरिवालक सब आवत छुवत महरिके गातासब आए रहे सुवल श्रीदामा हारेअवके तीतासोर पारि हरि सुवलहि धाए गयो श्रीदामा जाइ। दँदै सौहै नंद वया की जननी पैलैआइ ॥ हँसि हँसि तारी देत सखा सब भए श्रीदामाचोर। सूरदा स हँसि कहति यशोदा जीत्याहै सुतमोर ॥११॥ केदारो ॥ चलो लाल कछु करौ वियारी । रुचि नाही काहू पर मेरे तू कहि भोजन करयो कहारी ।। वेसन मिलै उरस मैदासों अति कोमल पूरीहै भारी । जेवहु श्याम मोहिं सुख दीजै ताते करी तुमहि पियारी ॥ निवुवा चूरन आंव अथानो और करौंदनकी रुचिन्यारी । वार वार तूं कहति यशोदा कहि ल्याए रोहिणि महतारी॥ जननी सुनत तुरतलै आई तनक तनक धरि कंचन थारी । सूरश्याम कछु कछु लेखायो जल अचयो अरु वदन पखारी ॥ १२॥ पौढिए लालमै रचिं सेज विछाई । अति उज्ज्वल है सेज तुम्हारी सोवत सुखदाईखेलत तुम निशि अधिकगई सुत नैननि नींद झमाई। वदन अँभात अंगण्डावत जननी