RANDRDO । (१४) सूरसागर। सकल सुखकी सीव कोटि मनोज सोभा हरनि । भुज भुजंग सरोजनयननि वदन विधु ! जित लरनि ॥ रहे विवरन सलिल नभ उपमा अपर दुतिउरनि ॥ मंजु मेचक मृदुल तनु अनुहरत भूपन भरनि । मनहुँ सुभग शृंगार शिशुपतरु फरयौ अद्भुत फरनि । चलत पद प्रति विव मणि आंगन घुटुरुवन करनि ॥ जलजसंघुट सुभग छवि भरि लेत उर जनु धनि । पुण्यफल अनुभवति सुतहि विलोकिकै नंदघरनि । सूर प्रभुकी वसी उर किलकिल कनि ललित लरख रनिं ।। ९९ ॥ राग धनाश्री ॥ किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत । मणिमय कनकनंदके आँगन मुख प्रतिविय पकरवेहि धावत।कवहूं निरखि हरि आपछांहको करसों पकरन को चित चाहताकिलकि हँसत राजतद्वै दतियां पुनि पुनि तिहि अवगाहत।कनक भूमि पर कर पग छाया यह उपमा एक राजताकर कर प्रति पद प्रति मणि वसुधा कमल वैठकी साजतवालदशासुख निरखि यशोदा पुनि पुनि नंद बुलावत । अचरा तर लै ढाकि सूरके प्रभुको जननी दूध पिवावत।।३००॥ विलावल ॥ नंद धाम खेलत हरि डोलत । यशुमति करत रसोई भीतर आपुन किलकत वोलताटेरि उठी यशुमति मोहनको आवडं घुटुरुवनधाए । वैन सुनत माता पहिचानी चलै घुटरुपनि पाए लैउठाय अंचल गहि पोंछे धूर भरी सव. देह । सूरज प्रभु यशुमति रजझारति कहां भरी यह खेह ॥१॥ अथ पायन चलनसमय॥ हो विलावल॥धानि यशुमति वडभागिनी लिये श्याम खिलावातनक तनक भुज पकरिक अटो होन सिखावे ॥ लरखरात गिरि परतहैं चलि बुटुरुवनिधावै । पुनि क्रमक्रम भुजटेकिकै पग द्वैक चलावै ॥ अपने पाँयन कवहिलौं मो देखत धावै ।सूरदास यशुमति यह विधि सौंज मनावै ॥२॥ कान्हरो ॥ हरिको विमल यशगावत गोपंगना । मणिमय आंगन नंदराइके वाल गोपाल तहां करें रंगना ॥ गिरि गिरि परत घुडरुवनि टेकत खेलतहैं दोउ छगन मंगना । धूसरि धार धौत तनु मंडित मान यशोदा लेत उछंगना ।। वसुधात्रयपद करत नआलस भयो तिन्हे कठिन परयो । देहरी उलंघना। सूरदास प्रभु ब्रजवधू निरखत रुचिर हार हिए सोहतु बंधना॥३३॥ महोबिलावल । चलन चहत पाँइन गोपाल । लै लगाइ अँगुरी नंदरानी मोहन मूरति श्याम तमाल । डगमगात! गिरि परत पाँइनि पर भुज भाजत नंदलाल । जनो श्रीधर श्रीधरत अधोमुख धुकत धरनि मानौ नमिनाला धूरि धोति तनु नैननि अंजन चलत लटपटी चाल । चरणसणित नूपुर ध्वनि मानोसर विहरतहै वाल मराल ॥ लट लटकनि शिरचारु चपोडा सुठि सोभासीहै शिशु भाल । सूरदास ऐसो सुख निरखत जो जीजै जगमें बहुकाल ॥४॥ विलावल सिखवत चलन यशोदामैया । अरवराइ कर पाणि गहावत डगमगाइ धरणीधरैपैया॥ कबहुँक सुंदर वदन विलोकति उर आनंद भरि लेत बलैया। कबहुँक वलिको टेरि बुलावति इहि आगन खेलौ दोउ भैया ॥ कबहुँक कुलदेवता मना वत चिरजीवे मरो बाल कन्हैया । सूरदास प्रभु सब सुखदायक अति प्रताप वालक नंदरैया ॥५॥ सूहाविलावलामणिमयआंगन नंदके खेलत दोउ भैया।गौर श्याम जोरी बनी बलराम कन्हैया लटकन ललित लटारियाँ मसि विंदु गोरोचन । हरि नख उर अति राजहि संतान दुखमोचन ॥ संग संग यशुभति रोहिणी हितकारनि मैया।चुटकी देहि नचावहि सुत जानि नन्हैया।।नील पीत पटओठनी देखत जियभावै । वालविनोद अनंद सों सूरज जन गावै ॥६॥राग धनाश्री ॥ आंगन खेलें नंदके नंदा । यदुकुल कुमुद सुखद् चारु चंदा ॥ संग संग वलमोहन सोहैं । शिशुभूपण सबको मन मोहैं । तनुश्रुति मोरचंद्र जिमि झलकोउमगि उमगि अंग अंग छवि छलकोकाट किकिनि पगनूपुर वाज। पकज पाणि पहुँचिया राजै ।। कठुला कंठ धनहा नीके । नयन सरोज मयन सरसीके ॥ लटकन ।
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