यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४
श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र।


अनुभव भयो विदित सब भास्यो।दैवचरित लीलादि बिलास्यो॥१०॥

दोहा-भयो छकत उनमत्तवत,प्रेमासवकरिपान।कृष्णचरित पदनवल नित,निज विरचतरुचिमान१

चौपाई-अस प्रकार कृत नवल सुहाई।भक्त सृष्ट कल कुंजन जाई।
करिप्रति दिवस मधुर स्वर गायन।भयो कृष्ण पद भक्ति परायन॥१॥
मथुरा निवसि सुयश सुख लय्यो।सूर विदित सब देशन भय्यो।
निर्मत तास ललित पद पावन।संशृति गाय लोक मनभावन॥२॥
वैष्णव भए भक्ति रसनागर।भक्त प्रधान सुयश वन सागर।
सूरदास हरि गुण गण गाते।जहॅं जहँ फिरहिं भक्त मदमाते॥३॥
तहँ तहँ भक्ति विवस अनुरागे।पाछे फिरहिं तासु प्रभुलागे।
सूर चरित पाछिल भगवाना।ग्वाल केलि वन धेनु चराना॥४॥
निज अनुभव इत्यादि सुहाए।देखत रहत भक्ति सरसाए॥५॥
ब्रह्मानंद मगन दिन राती प्रेम भक्ति कछु कही न जाती॥६॥

दो०-एक दिवस मारगचलत,विधुन कूपकल कोय।दृगविहीन चीन्हयो न कछु,लग्यो भक्तच्युत होय

चौपाई-तब भगवान भक्त रखवारे।अद्भुत गोप घेष निजधारे॥
गहत करन कर तुरत मुरारी।भक्त कूप च्युत लीन निवारी॥१॥
कार कर हरण त्रास कर केरा।सूरस परश लेत जिय हेरा॥
इहकर जानि परत नर नाही।करि विचार करुणानिध काहीं॥२॥
करते लीन पकरि कर संगा।कहि सवचन मन मोद उमंगा॥
अब न तजहुँ बिनु साँच वखाने।तब भगवान वदन मुसकाने॥३॥
सूर करन कर करि बरजोरा।चले छुड़ाय भक्त चितचोरा ।।
अस जिय जानि देव चतुराई।ब्रह्मानन्द सूर सुखपाई॥४॥
मानत भयो भूरि निज भागा।कर सों कर कृपालु जब लागा॥ .
गदगद गिरा प्रेम हग वारी।वोल्यो बदन वचन मनहारी॥६॥
बंदहु बार बार प्रभु तोही।जो अस निवल जानि जिय मोही॥
केसी कंस असुर मद गंजा।लीन छुड़ाय सवल कर कंजा॥६॥

दो०-काह भयो करते छुटे,कर्णधार भवसिंधु।मनते छूटन कठिन जन,भक्त कुमुद उर इंदु ॥१॥ अवतो बलकरतोरिकर,चले निवल कर मोहिाँपै मनते टूटों न जब, तब देखों प्रभु तोहिं ॥२॥

चौपाई-सुनि कटाक्ष मय वचन सुहाए।सूरदास कर प्रभु मनभाए॥
हर्षे दीनदयालु भगवाना। कीन स्परस हगन तिहि पाना॥१॥
तत्क्षण अंग नयन युग तासा।असल विमलं कल ज्योतिप्रकासा॥
पाय दिप्ति अस सूर सुजाना।सन्मुख कृपासिंधु भगवाना॥२॥
कलित कंजलोचन घनवरना।आनन हृदय भक्ततमहरना॥
चारु लिलाट खोर श्रीखंडन।माल जयंति जनन मनमंडन॥३॥
यज्ञोपवीत पीतपट राजा।निज छवि कोटि मदनमद लाजा॥
चितवनि चारु मुनिन मनमोहन।धृत गोपाल वेष बर सोहन॥ ४॥