सूरसागर। दुसह दुःख भय हरनी॥ ९९॥ अंगदादि निकट हनुमानका पुनः आगमन सीता सुधि देन॥राग मारूं ॥नमान अंगदके आगे लंक कथा सब भाषी।अंगद कह्यो भली तुम कीनी हम सबकी पति राखीहर्षवंत है चले तहां ते मगमें विलम न लाई। पहुँचे आई निकट रघुवरके सुग्रीव आयोधाई । सवन प्रणाम कियो रघुपति को अंगद वचन सुनायो। सूरदास प्रभु पदप्रताप करि हनू सिया सुधि ल्यायो । ॥१०० ॥ सुग्रीवादि कृत हनूमान प्रशंसा॥ राग मारू ॥ हनू से सबको काज सँवारयो। बार बार अंगद यों भाषै मेरो प्राण उवारयो।तुरतहि गमन कियोसागर ते बीचहि वाग उजारचोकियो मधुवनको. चौर चहूं दिशि माली जाइ पुकारयो॥ धनि हनुमंत सुग्रीव कहतहै रावणको दल मारयो । सुर सुनत रघुनाथ भयो सुख काज आपनो सारयो॥ १०१ ॥ श्री रामचन्द्र हनुमान गोष्ठी । राग मारू ॥ कहौ कपि जनकसुता कुशलात । आवागमन सुनावहु अपनो देहु मैं सुख गात ॥ सुनो पित जल अंतर हैकै रोक्यो मग इक नारि। घर अंबर घन रूप निशाचरिं गरजी वदन पसारिगतिव में डरपिकियो छोटो तनु पैव्यो उदर मंझारि । खरभर परी देव आनंदे जीत्यो पहिली रारिरागिरि मैनाक उदधि में अद्भुत आगे रोक्यो जात । पवनपिताको मित्र न जानत धोखे मारी लातातिवहीं और रह्यो सरितापति आगे योजन सातोतुव प्रताप पेलि दिशि पहुँच्यो कौन बढ़ावै बात । लंका पौरि पौरि मैं ढूंढी अरु वन उपवन जाइ । तरुवर तर अवलोकि जानकी तब हौं रह्यो लुकाइ.॥ रावण कह्यो सु कह्यो न जाई रह्यो क्रोध आति छाई। तवही अवध जानिक राख्यो मंदोदरि समुझाई। तब हौं गयो सुफल बारी में देखी दृष्टि पसारि । असीसहस किंकर दल जिहि के दौरे मोहिं निहारि । तुम परताप देव छिन भीतर जुरत भई नहिं वारातिनको मारि तुरंतहि कीनो. मेघनाद सो रार ॥ ब्रह्म फांस जव लई हाथ कार मैं चेत्यो करजोरि । तज्यो कोप मर्यादा राखी वध्यो आपही मोर ॥ रावणपै लैगयो सकल मिलि ज्यों लुब्धक पशु जाल । करुवो वचन श्रवण सुनि मेरो तव रिस गही भुवाल ॥ आपुनही मुद्गर लै धायो करि लोचन विकराल । चहुँदिशि सर सोर करि धाव ज्या केहरिह सियाल।। १०२॥राम वचन ।। राग मारू || कैसे पुरी जरी कपिराया बड़े दैत्य कैसे कार मारे ईश्वर तुमैं वचाइ ॥ प्रगट कपाट बड़े दीने हैं वहु जोधा रखवारे । तेतिस कोटि देव वश कीने ते तुमसे क्यों हारे । तीनिलोक डर जाके कंपै तुम हनुमान न पेखे । तुमरे क्रोध शाप सीताके दूरि जरत हम देखे ॥ हो जगदीश कहा कहौं तुमसों तुम वर तेज मुरारी। सूरजदास सुनो सव संतो अवगति की गति न्यारी१०३॥सेना समेत सिंधुतट राम पयान ॥राग मारूासीय सुधि सुनत रघुवीर धायोचल्यो तव लक्षण सुग्रीव अंगद हनू जाम्बवंत नील नल सबै आयोभूमि अति डगमगी योगनी सुनि जगी सहसफन शेश सो शीश कांप्यो । कटक अगणित जुरयो लंक.. खरभर परयो सूरको तेज धर धूर ढायो। जलधि तट आइ रघुराइ ठाढ़े भए ऋच्छ कपि गराज बै ध्वनि सुनायो । सूर रघुराइ चितये हनुमान दिशि आइ तिन तुरतही शीश नायो ॥१०॥ हनुमान निज शरीर बल कथन।राग केदारा ॥राघव जू कितक बात ताज चिंताकतकरावण कुंभकर्ण दल - सुनिहो देव अनंताकहो तुलंक लकुट ज्यों फेरों फेरि कहूं लै डारों कहो तु पर्वत चापि चरण तर नीर : खार में गारों।कहोतोअसुर लंगूर लपेटौं कहौतु नखन विदा कहो तुशैल उपारि पेडते दै सुमेरु सों : मा जितक शैलसुमेरु धरणि में भुजभरि आनि मिलाऊोसप्त समुद्र देउँ छातीतर इतनक देह बढ़ाऊं ।। चली जाहु सेना सव मोपर धरो चरणरघुवीर॥मोहिं अशीश जगत जननी की तुवतनु वज्र शरीर जितक घोल बोले तुम आगेरामप्रताप तुमारे । सूरदास प्रभुकी सब सांची जनकी पैज पुकारे॥ -
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