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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र।


धेनुक वधन प्रलंब पुनि,तृणावर्त वश काल । वृंदावन रक्षाकरन, नग नख धरण रसाल॥३॥ रचन रास लीलादि पुनि,वचन सखन सखिसंगाकेसि विध्वंसन नंदकल,त्रातन हृदय उमंग॥ दावानल कर शमन पुनि,ग्वालन सन मन चाउ। वन वन विहरन सजन सुन,हनन कंसरिपु राउ ५॥ जननि जनक बंधन मुकत, चरित चारु इत्यादि। जब जब होत स्मरण इह, उपजत हृदय दुखादि

चौपाई-सदा रहत मानस उतकंठा।तजि निज रुचिर धाम वैकुंठा।
पुनि कब वपुष पूर्ववतधारी।अद्भुत करहुँ चरित मनहारी॥१॥
जे जन भक्ति निरत बड़ भागे।मोर प्रेम पावन रस पागे।
हृदय कुत्तकै कपट सब खोई।मोर रुचिर लीला कृत जोई॥२॥
यथा विधान रास विरचाई।गायन श्रवण करहिं मन लाई।
सो साक्षातविश्व शुभचारी।मोर स्वरूप भक्त व्रत धारी॥३॥
मथुरा धारि जन्म त्रिय जोई।मोर ललित उत्सव पर होई।
सो मोहिं यशुमति मातु समाना।सुनहु आन अव भक्त सुजाना॥४॥
जे नर मोर जन्म दिन लेखी।धारि रुचिर व्रत भक्ति विशेषी।
बालरूप मम पूजन करहीं।आवागमन सहज श्रम हरहीं।॥५॥
करि प्रवेश मथुरापुरि माहीं।जो जन करहिं रटन मोहि काहीं।'
भक्त मोर सो प्राणन प्यारू।ताकर तरन सुमन संभारू॥६॥
अब तोहि जोपि भक्तवड़भागा।मथुरा गमन प्रीति अनुरागा।
तो अब सुनहु कथन कल मोरा।संतत भक्त सृष्ट हित तोरा॥७॥
जहि ते तहां सजन तुव जाई।सोउ लेहु सुख कीरति पाई।
अस कहि कृष्ण दैव भगवाना।लागे तासु प्रवोधन ज्ञाना॥८॥
कलीकाल संध्या अवसाना। मथुरा प्रांत भक्त गुणखाना।
सुभ्रत विप्र वंश उपजाई।मथुरा मोर ललित पुर आई॥९॥
मोर जन्म लीला गत पारू।करत करत गायन व्रत धारू।
सोउ अखंड सुयश सुख जोही। होहिं भक्तजन प्रापत तोही॥१०॥
बहुरि मोर लीला मनभायन।प्राकृत वदन सफुट जब गायन।
कीन तुमहुँ संगीत प्रकारू।सुभ्रत ललित प्रेम रस सारू॥११॥
सुनत लोक कलिकाल मझारा। हुइहै भक्ति निरत संसारा।
बदहि मोर चरणन अनुरागा।उधरहिं तुव प्रसाद बड़ भागा॥१२॥
पै तुव जन्म अंध दृग हीना।जननि जनक अस देखि प्रवीना।

दोहा-पालहिं जन समान कछु,सुत सनेह वश तोहि।आन सक बांधव सुहृद, सो न करहिं हितकोइ॥

चौपाई-केवल जननि करहिं तुव सेवा।अस कहि बदन भक्त द्रुम देवा।
भए बिराम कृष्ण धन बरना। तब प्रणाम करि यादव चरना॥१॥
कलि संध्या कर अंत प्रवीना। सोचन लग्यो भक्ति मन लीना।
सो जब समय आय नियराना। तजि विकुंठ यादव गुणखाना॥२॥
मथुरा प्रति विप्र वर गेहानमा उत्पन्न भक्त हरि नेहा।