हमीर भूपत संग खेलत आप। तासु वंश अनूप भो हरचंद अति विख्यात ॥ आगरे रहि
गोपचल में रहो ता सुत वीर । पुत्र जनमें सात ताके महाभट गंभीर ॥ कृष्णचंद (६) उदारचंद जो रूपचंद सुभाइ । बुधचंद प्रकाश चौथो चंद भै सुखदाइ ॥ देवचंद प्रबोध संश्रृत (६)चंद
ताको नाम । भयो सप्तो नाम सूरज चंद मंद निकाम । सो समर करि साहि सेवक गये (७)
विधिके लोक । रहो सूरजचंद दृग ते हीन भर वर सोक ॥ परो कूप पुकार काहू सुनी ना संसार।
सातयें दिन आइ यदुपति कियो आप उधार॥दियो (८)चख दै कही शिशु सुनु मांग बर जो चाइ। हों कहों प्रभु भगत चाहत शत्रु नाश सुभाइ ॥ दूसरो ना रूप देखों देखि राधा श्याम । सुनत करुणासिंधु भाषी एवमस्तु सुधाम ॥ प्रबल छद छिन विप्र कुलते शत्रु हूहै वास । अषित (९) बुद्धि विचारि विद्यामान माने मास ॥ नाम राखे मोर सूरजदास, सूर, सुश्याम । भये अंतर्ध्यान
बीते पाछली निशि याम॥ मोहि पनसो (१०) इहै व्रजकी वसे सुख चित थाप । थपि (११) गोसाई करी मेरी आठ मध्ये छाप ॥ विप्र प्रथजगात को है भाव भूर निकाम । सूरहै नंदनंद जूको
लयो मोल गुलाम ॥ ११८॥
अर्थ सुगम-सूर आपन वंश वर्णत है ॥ ११८ ॥
यही नहीं सिद्ध करती हैं कि चंद कवि पृथ्वीराजजीके समयमें हुआथा परन्तु रायसेमें लिखे कतिपय और वृत्तान्त भी कुछ फेरफारके साथ सिद्ध करती हैं।
(मेजर रेवौं साहवकृत तबकात नासरी पृष्ठ ४८६)
हिन्दू लोग एक भिन्न वृत्तान्त लिखते हैं कि उसीको अव्नेवुलफजल और जम्मूकी तवारीख वाले ने भी थोड़े से फरक के साथ वर्णन किया है-
यद्यपि फारसी इतिहासवेत्ता लिखते हैं कि रायपिथौरा तलावरी ( तराई ) पर लड़ाई में मारागया और मुईजुद्दीन दमयक में एक खोखरके हाथसे मारागया कि जो इसी कामके लिये उतारू हो रहा था, और ऐसेही वृत्तान्त का अवलंब तवकात अकवरी और फरिश्ता के ग्रंथकर्त्ताओ ने किया है, तथापि हिंदू भाटों के मुख जुवानी वर्णनसे, कि जो प्रत्येक नामांकित शाखेकी ख्यातोंके भंडार हैं, और जो पीढ़ियों तक कंठस्थ वृत्तान्त एक दूसरे को उपदेश करते आये हैं, यह वर्णन किया गयाहै कि राव पिथौराके लड़ाईमें कैदहोनाने और गज़नी को ले गये पीछे एक चंद जिसे कोई चांदा करके भी लिखते हैं कि जो राय पिथौराका स्तुति पाठक और विश्वासी सहचर था और कोई २ ग्रंथ कर्त्ता उसे राय पिथौरा का कविराज करके भी लिखतेहैं, वह अपने आपदाग्रस्त स्वामीकी खवर लेनेको गुज़नी पहुँचा वह अपने अच्छे प्रयत्नोंके वल से प्रबंध कर मुलतान मुईजुद्दीन की सेवामें प्राप्त हुआ और वंदीगृहमें राय पिथौराके साथ बातचीत करने में भी सफल हुआ । यह दोनों किसी एक युक्ति पर सम्मत हुये और एक दिन चंद ने अपने छलबलके द्वारा सुलतानके मनमें राय पिथौरा की वाणविद्यामें परमकुशलता देखने की नितान्त इच्छा उत्पन्न की और उसको चंदाने इतनी सराही कि सुलतान का मन उसे देखे बिना न रहने लगा निदान बंधुआ राना सन्मुख लाया गया और उससे उसकी बाण विद्याकी परमकुशलता दिखाने की विनती की गई । उसके हाथमें एक धनुष और वाण दिये गये । उसने अपनी स्वीकृत युक्तिके अनुसार जो निशाना सुलतानने नियत कराया था उसे छोड़ कर खास सुल्तानने ही वाण मारा कि वह वहीं मरगया और सुलतानके पासवालोंने राय पिथौरा और चंदाको काट कर टुकड़े २ कर डाले।
जम्मू की तवारीखवाला लिखता है कि राय पिथौरा अंधाकर (देखो टिप्पण १ पृष्ठ ४६६ ) दिया गया था और जब वह वंदीगृह से वाहर लाया गया और उसके निज धनुष और वाण उसे दिये गये । यद्यपि वह अंधाथा तथापि उसने वाण चढा कर और साध कर सुलतानके शब्दके अनुसंधान और चंदा की सुचनाके अनुसार सीधा ऐसा मारा कि वह सुलतान के जाकर लगा। वाकी का वृत्तान्त तदनुसार ही है।
इति श्रीपदकूट सूरदासटीका संयुक्त संपूर्णम् ।
टिप्पणी-सरदार कविने कईएक स्थान इस भजन में पाठांतर किया है वह अंक देकर नीचे लिखा है। (१) शुभमें (२) पृथ्वीराज (३)रंतभौर (४) सुखअवदात (५) कृतचंद (६ ) षष्टम (७) साहिसे सब (८) दिव्य (९) अखिल (१०) मनसा ( ११) श्री सूरदासके विषय में ग्रंथके अन्त में लिखा जायगा।