यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथमस्कन्ध-१ (१७) उमा जाइ शिवको शिरनाई । कह्यो सुनो विनती सुरराई ॥ मुंडमाल कैसे तव ग्रीवा । ताकी मोहिं वतावहु सीवा ॥ शिव तब बोले वचन रसाल । उमा आहि यह सुनि गुड़माल ॥ जब जब जन्म तुम्हारो भयो । तव तव सुंडमाल में लयो॥ उमा कहयो शिव तुम अविनाशी । मैं तुम्हरे. चरणनि की दासी । मेरे हित इतनो दुख भरत । मोहिं अमर काहे नहिं करत ॥ तव शिव उमा गये ताठौर । जहाँ नहीं द्वितिया कोउ और सहसनाम तहां तिन्हें सुनावौ । जाते आप अमर पद पावौ।तहां हुतो इक शुकको अंग । तिन यह सुन्यो सकक परसंग।ताको शिव मारन को धायो। तिन उडि अपुनो आप बचायो।उड़त उड़त शुक पहुँच्यो तहां नारि व्यासकी बैठी जहाशिवह ताके पाछे धाए । पै ताको मारन नहिं पाये।व्यासनारि तब ही मुख वायो। तव तनु तजि मुख माहि समायो । द्वादश वर्षे गर्भ में रह्यो । व्यास भागवत तव तिहि कह्यो।बहुरो जब यदुपति समुझायो । तेरी माता बहु दुख पायो । तू जहि हित वाहर नहिं आवै । सो हमस कहि क्यों न सुनावै ।। प्रभु तुव माया मोहिं सतावत । ताते हों वाहर नहिं आवत ॥ हरि कह्यो अव न व्यापि है माया। तब वह गर्भ छांडि जग आया ॥माया मोह ताहि नहिं दह्यो । सुन्यो ज्ञान सो सुमिरन रह्यो । जैसे शुकको व्यास पढायो । सूरदास तैसे कहि गायो । १०७ ॥ श्री भागवत वक्ता श्रोता प्रस्ताव वर्णन ॥ राग बिलावल ॥ व्यासदेव जय शुकहि पढ़ायो । सुनिकै शुक सो हृदय बसायो । शुक सों नृपति परीक्षित सुन्यो । तिन पुनि भली भांतिकै गुन्यो ॥ सूत शौनकनि सों पुनि कह्यो विदुर मैत्रेय सों पुनि लह्यो । सुनि भागवत सवनि सुख पायो । सूरदास सो वरणि सुनायो ॥१०८ ॥ सूत संवाद ॥ राग विलावल ॥ सूत व्यास सो हरि गुण सुने । बहुरो तिन निज मनमें गुने ॥ बहुरौ नैमिपार पै आयो । तहां ऋपिनको दरशन पायो ॥ ऋपिन कह्यो हरि कथा सुनावहु । भली भांति हरिको गुण गावहु ॥ प्रथम कहो तिन व्यास अवतार । सुनौ सूर सो अव चित धार ॥ ॥ १०९ ॥ व्यास अवतार वर्णन ॥ राग बिलावल ॥ हरि हार हरि हरि सुमिरन । करौ हार चरणाविद उर धरौ ॥ व्यास जन्म भयो जा परकार । कहौं सो कथा सुनौ चितधार ॥ सत्यवती मच्छादरि नारी। गंगातट ठाढी सुकुमारी॥ पराशर ऋपि तहां चलि आए। विवश होइ तिनके मद पाए। ऋपि कह्यो ताहि दान रति देहि । मैं वर दीन्यो तोहिं सुलेहि ॥ तू कुमारिका बहुरौ होई। तोको नाउँ धरै नहिं कोई ॥ मेरो कझोन जो तू करि है । देउँ शराप महादुख भरि है ॥ सत्यवंती शाप भय मान । ऋपिको वचन कह्यो परिमान ॥ व्यासदेव ताके सुत भये । होत जन्म बहुरो वन गये ॥ योजनगंधा माता करी। मच्छ वास ताकी तब हरी ॥ देखो काम प्रताप अधिकाई। वश कियो पराशर ऋपिराई ॥ प्रवल शत्रु आहै यह मार । याते सुनौ चलौ संभार ॥ या विधि भयो व्यास अवतार । सूर कह्यो भागवत अनुसार ॥११०॥श्री भागवत आदि तरण कारण॥राग बिलावलं भयो. भागवत चारि प्रकार । कहौं सुनो सो अब चितधार ॥ सतयुग लाख वर्षकी आई । त्रेता दशसहस्त्र कह गाई ॥ द्वापर सहस एक रहि गई । कलियुग शत संवत रहि गई। सोऊ कहन सुनन को भाई। कलि मर्याद कही नहिं जाई । ताते हरि करि व्यास अवतार । करी संहिता वेद विचार ॥ वहरि पुराण अठारह गाए । पै तोऊ शांती नहिं पाए ॥ तव नारद तिनके ढिग आय । चारि श्लोक कहे समुझाय ॥ ए ब्रह्मा सों कहे भगवान । ब्रह्मा मोसे कहे बखान ॥ सोई अब मैं तुम सों भापे । कहौं भागवत इहि हिय रापे ॥ श्री भागवत सुने जो कोई । ताको हरि पद प्रापति होई ॥ ऊंच नीच व्योरो न बड़ाई । ताकी सापी मैं मुनि भाई ॥ जैसे लोहा कंचन