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इन्दिरी। यह उपन्यास बङ्गभाषा के सुप्रसिद्ध लेखक स्वर्गीय श्रीयुत बङ्गिमचन्द्र चटर्जी का लिखा है। इसका हिन्दी अनुवाद श्रीमान् पण्डितकिशोरीलालगोस्वामीजी ने किया है। यह उपन्यास बड़ा ही दिलचस्प और अनूठा है। इन्दिरा का ससुरार जाते समय रास्ते में डाकुओं के द्वारा लूटी जाना, फिर जङ्गलों में भटकना, और धीरे धीरे एक वकील के यहां रसोई करने पर रहना, और वकील की स्त्री के साथ सखी-भाव का स्थापित होना, और बूढ़ी मिसरानीजी की दिल्लगी, पके बालों में वजाब का परिहास आदि देखने ही योग्य है। न्ति में इन्दिरा के पति का वकील के यहां आकर हरना, और फिर इन्दिरा का अपने पति के पास परनारी' के रूप में जाना, और इन्दिरा को सके पति का ' पर-स्त्री' समझकर ग्रहण करना, और उसे लेभागना । फिर अन्त में भेद का खुलना पौर इन्दिरा का सुखी होना, आदि बड़ी ही विचित्र बटनाएं इस उपन्यास में हैं। पुस्तक पढ़ने ही योग्य है। बड़े आकार की बड़ी पुस्तक का मूल्य केवल सवा पिया और डाक व्यय तीन आने । मिलने का पता-श्रीसदर्शननेस. वन्द्रावत।