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श्रीः चन्द्रिका वा जड़ाऊ चम्पाकली। जासूसी उपन्यास । मूल्य दो पाने । ____ यह उपन्यास है तो छोटासा, पर इसकी दिलचस्पी बड़े गड़े जासूसी उपन्यासों का मुकाबिला कर सकती है। दिल्ली के रईस बाबू द्वारकादास की भतीजी चन्द्रिका का दुष्टों के हाथ में फंस जाना और फिर उसे नामी जासूस यदुमाथ मुकुर्जी का नोज निकालना बड़ी खूपी के साथ लिखा गया है। ___ चन्द्रिका स्वर्गीय बद्रीदास की लड़की थी। जब वे मरे तो अपनी सम्पत्ति का "विल" कर के उन्होंने अपनी लड़की अपने छोटे भाई द्वारिकादास के सुपुर्द करदी थी। चन्द्रिका का ब्याइ शशिशेखर के पुत्र चन्द्रशेखर के साथ पक्का हुआ था। बद्रोदास का वही विल चन्द्रिका का काल होगया ! अर्थात् द्वारिकादास की दूसरी स्त्री दुष्टा "माया" ने अपने भाई मथुरादास के साथ चन्द्रिका का ब्याह करना चाहा, पर जब इस बात पर चन्द्रिका न राजी हुई तो अपनी बहिन माया की सलाह से मथुरा दास ने कई गुण्डों की मदद से चन्द्रिका को कैद कर लिया और उसके खून होजाने की शोहरत मचादी । आग्विर जासूस में चन्द्रिका को खोज निकाला और उसका ब्याह चन्द्रशेखर के साथ ही गया। दुष्टों ने अपने किये का फल पाया और माया ने आत्मग्लानि से फांसी लगाकर अपनी जान देदी । इस उपन्यास में जो चन्द्रिक के नाम का विल (दानपत्र) है, वह पढ़ने लायक है । उपन्यास बहुत ही अनूठा, दिलचस्प, मजेदार और रसीला है। मिलने का पता,-मैनेजर श्रीसुदर्शनप्रेस, वृन्दावन (मथुरा)