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সুন্না । - __"कोमलहदये ! अब क्यों व्यर्श तुम अनुनय-विनय करती हो! तुम्हारे आर्तनाद पर कौन दया करेगा! विधाता की इच्छा नहीं है कि मेरा उद्धार हो ! अहा! प्यारी ! तुमने मेरे उद्धार के लिये सब कुछ किया, किन्तु यही दुःख मेरे मन में है कि मैं कुछ भी तुम्हारा प्रत्युपकार नहीं कर सका! अस्तु-हरेरिच्छा बलीयसी !!! तुम सरला से कहना कि वह उदासीन के संग ब्याह करले और प्रिये! तुम जाकर मेरे वृद्ध पिता की सांत्वना करना! __यह सुनकर अनाथिनी कुछ भी नहीं योली, किन्तु ऊंचे स्वर से रोने लगी। कापालिक ने भूपेन्द्र को डांटकर बलि चढ़ाने के लिये प्रस्तुत किया ! रामशङ्कर तलवार उठाकर भूपेन्द्र का सिर धड़ से अलग किया चाहता था कि बन में घोड़ों की "टपाटप" टाप सुमाई पड़ी। और कई अश्वारोहियों ने आकर क्षणभर में कापालिक, रामशङ्कर तथा फकीर को पकड़ लिया। ये वेही लोग थे जिन्होंने प्रेमदास से रामशङ्कर का हाल पूछा था। यह हाल देखकर अनाथिनी बड़ी मगन हुई और घटण्ट भूपेन्द्र का बन्धन खोलकर हलीखुशी उनके संग आनन्दपुर चली। मार्ग में उन दोनों प्रेमियों में जो कुछ प्रेम की बातें हुईं, उनका सविस्तर वर्णन तो हम कहांतक करैं; हां, इतना हम जरूर कहेंगे कि भूपेन्द्र अनाथिनी का अथाह प्रेम देखकर उस पर पूर्णरूप से अनुरक्त होगया और कहने लगा,-"प्यारी, तुमने अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाने के लिये अपने हृदय की जैसी दृढ़ता दिखलाई है, उसे में आजन्म न भूलंगा।" अनाथिनी ने हंसकर कहा,-" प्यारे ! इस विषय में मैंने तो कुछ भी नहीं किया ! हां, तुम जगदीश्वर को असंख्य धन्यवाद दो कि उस परमात्मा की प्रेरणा से ठीक समय पर पुलिसवाले पहुंच गए, नहीं तो महा अनर्थ होजाता। . भूपेन्द्र ने कहा,-" कुछ भी हो, परन्तु तुम्हारे हृदय की गरिमा मैंने भली भांति जानली।" बस, इसके अतिरिक्त पारस्यरिक प्रणयसम्भाषण की विशेष परतों का अनुभव भुक्तभोगी महाशय और महाशयाजन स्वयं करलें तो अच्छो हो।