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उपन्यास । हरिहर,-ठीक, ठोक!!” अनाथिनी,-"आपका नाम क्या है, श्रीहरिहर शर्मा ?" हरिहर,-बेटी ! तून कैसे जाना ? मैने तो तुझसे पहिले कुछ नहीं कहा था!" _अनाथिनी,-"आप पिता के लिये इतने दुःखित हुए। मैंने सुना था कि आपको छोड़कर मेरे पिता का दूसरा बंधु संसार में नहीं है। इतना कहकर बालिका रोने लगी। हरिहर,-"बेटी, अब न रो, मैं ही हरिहरशाहूं। तुम्हीलोगों की खोज में घर से निकला हूं । चुप रह । रामशङ्कर की दगाबाजी से तेग भाई हरा गया है।" पिता के एकमात्र उपकारी मित्र को देखकर अनाथिनी का मन भर आया, भक्तिरस से शरीर फूल उठा। वह फूट फूट कर रोने और हरिहर के चरण पर गिर कर भनेक बिलाप करने लगी। हरिहरथाबू बहुत ही मर्माहत हुए। उन्होंने धीरे धीरे अनाथिनी को उठाकर बहुत समझाया-बुझाया। कुछ देर में शान्त होकर अनाधिनी ने पूछा,-"पिता! सुरेन्द्र कैसे मिलेगा? मैं कहां___हरिहर,-'बेटी! वह जरूर मिलेगा। बिचारालय में मैं नालिश करूंगा, गवर्नमेन्ट अवश्य ही दुष्ट रामशङ्कर को दण्ड देगी और सुरेन्द्र को तुझे देगी। बेटी! तू मेरे घर की गृहलक्ष्मी होगी। आज से मेरे यहां सुख से रहियो ! भूपेन्द्र जब प्रदेश से फिरैगा तो उसके संग तेरा विवाह कर दूंगा।" गनाथिनी ने लजा से सिर झुका लिया । इनके पुत्र का नाम भूपेन्द्र था । अनन्तर दानों नाव पर सवार होकर भागीरथी का तर त्याग कर आनन्दपुर की ओर चले। autoritario न० (४)