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उपन्यास। - - D o ornaw......... - innovavvvvvvAm/NMMouvviyinine बिचारी बालिका रोते रोते सब दुःख दूर करनेवाली निद्रा की गोद में लेट कर सो गई । निद्रा से भी मानो बालिका यही प्रार्थना करती थी कि, 'अनन्तकाल तक मेरी आंखों में नींद बनी रहै। अनाथिनी तो सो गई, फिर क्या हुआ? थोड़ी देर के बाद उसी घाट पर एक नाव आ कर लगी । उस पर एक पचास वर्ष के वृद्ध सवार थे। उनका रंग गोरा, शरीर दोहरा, हंसता चेहरा और ठाट-बाट अच्छा था। नाव पर से उतर कर सीढ़ी पर पाँव रखते ही वे चिहुंक उठे। उन्होंने देखा कि, 'निम्न सोपान पर एक बालिका पड़ी सो रही है!' "बालिका कौन है ? इतनी रात गए यहां क्यों पड़ी है ? " इत्यादि जानने के लिये चंचल होकर वे बालिका की दशा देख कर बहुत उदास हुए। उन्होंने देखा कि, 'बालिका का मुख पूर्णचन्द्रसा होने पर भी निराशा की गाढ़ मसीमयी मेघमाला से आच्छन्न है और मुंदे नयनों की कोर से वर्षाविन्द की तरह अश्रविन्द बरस रहे हैं ! ' अवश्य ही तय तक अनाथिनी के मन में चिन्ता को ज्वाला जलती होगी, क्योंकि मन सदा चंचल रहता है, कभी भी विश्राम नहीं करता । बहुत श्रम से और सय इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं, पर मन नहीं थकता । जान पड़ता था कि अनाथिनी की पहिलेवाली सब चिन्ताएं मिलकर भीतर आन्दोलन करती हों, इसीसे दुःखदायिनी चिन्ता के प्रताप से अनाधिनी सोई-सोई रो रही होगी। ___ अपरिचित व्यक्ति क्या करते ? 'तुरंत निद्रा भंग करनी भी उचित नहीं है, इत्यादि सोचते सोचते निर्निमेष लोचनों से वे ' उसकी ओर निहारने लगे। चन्द्र की चमकती किरण से उसके आंसू की लड़ी मोती सी झकझकाती थी। ___सहसा उन्होंने बालिका के अंचल में एक गांठ देखकर जलदी से खोला तो एक पत्र निकला । उसको देखते ही वे कांप उठे ! 'ऐं'-" ! "हरिहरशर्मा" यह तो मेरा ही नाम है ! और यह मेरे ही हाथ का लिखा पत्र है । मैने ही इसे लिखा था। ओः !जान पड़ता है, कि यही अनाधिनी है ! देखं बहुत दिन हुए, इससे खूब याद नहीं आता। वही होगी, ठीक वही है, पर यह यहां इस अवस्था में इस प्रकार को पड़ी है ? "