पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/७२

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सिन्हा और अध्ययन कलाओं का वर्गीकरण कई आधारों पर किया जाता है । सब से पहला आधार तो उपयोगिता और सौन्दर्य का है । उपयोगिता भौतिक सुख से सम्बन्धित है, सौन्दर्य मानसिक से। जिन कलानों में उपयोगिता उपयोगी और का प्राधान्य हो वे उपयोगी और जिनमें सीन्दर्य का प्राधान्य ललित कलाएँ हो वे ललित कलाएँ कही जायँगों । कला को उपर्युक्त परि- भाषा वास्तव में ललित कलानों पर ही लागू हो सकती है क्योंकि बढ़ई-लुहार की कलाओं को हम आनन्द की अभिव्यक्ति नहीं बाह समाते। उनमें भी आनन्द की अभिव्यक्ति तब हो सकती है जब कलाकार अपना काम रुचि के साथ करता है । जो वस्तुएँ सीधे-तौर से हमारे सुख का सम्पादन करती हैं वे ललित कलाएँ कही जायेंगी और जो साधन-रूप से सुख का सम्पादन करें वे उपयोगी कलाओं में शामिल होंगी, वास्तव में यह विभाजन पाश्चात्य परम्परा के अनुसार हैं और अधिक वैज्ञानिक भी नहीं है । लालित्य और उपयोगिता का नितान्त पार्थक्य नहीं है । चाकू के बेटे पर यदि नवकासी हो (और गाल उसका दिखावा-मात्र न हो ) तो उसमें कला और 'उपयोगिता का सम्मिश्रण हो जायगा। जहाँ तक होता है मनुष्य सुन्दरता को चाहता है । स्टीग एजिन पर थोड़ी. बहुत सजावट कर ही दी जाती है। रेलवे स्टेशनों की तो बात ही दूसरी है, लोग जेलखानों और पुलिस स्टेशनों को भी गमलों और फूलों से राजाते हैं। सौन्दर्य स्वयं अपनी उपयोगिता रखता है । सुन्दर वस्तु के देखने से पित्त प्रराज . होता है, काम करने में स्फूर्ति मिलती है । सङ्गीत , से तो मानसिक रोग भी अच्छे किये जाते हैं । स्थापत्य या वास्तुकला (Architecture ) में सौन्दर्य के साथ उपयोगिता का सम्मिश्रण रहता है । जिसको उपयोगी कला कहते हैं उसका ठीक नाम शिल्प अथवा Craft है । हमारे यहाँ स्थापत्य मूत्ति, तक्षण, और चित्रकला को शिल्प कहा गया है। .. .. ... आजकल लोग ( विशेषकर क्रोचे से प्रभावित ) कलाओं के वर्गीकरण के पक्ष में नहीं हैं । कला आत्मा की ही अभिव्यक्ति है और प्रारमा एक है । कोचे मत से कला का जन्म कलाकार के अन्तःकरण में होता - कलाओं का है। वहाँ पर विभाजन का कोई प्रश्न नहीं उठता । विभा- . वर्गीकरण । जन कला का नहीं वरन् कला-कृतियों का जो श्रान्तरिक .. . कला के वाह्य रूप हैं, होता है। सामग्री और अभिव्यवित के माध्यम के भेद से कलाओं में भेद माना गया है ? मोचे यो गत से मानसिक अभिव्यक्ति ।" की अवस्था में (उसके मत से यही असली वाला है) कोई श्रेणियाँ नहीं रहतीं। भारतवर्ष में इसी कारण कलामों का नाम-परिगणन तो कराया है किन्तु