पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२८९

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सभालोचना के मान-कला और नीति आत्मभाव पृथक् हैं किन्तु उसके काव्यरसास्वाद में दोनों के अलौकिक प्रात्म- भाव मिल जाते हैं-'In order to judge Dante, we must raise ourselves to his level: let it be vell understood that empirically we are not Dante, nor Dante ive ; but in that moment of judgment and contemplation, our spirit is one with that of the poet, and in that moment we and he are one single thing.' -Croce (Aesthetic-Taste and Art, Page 199) इस उद्धरण को देखते हुए क्रोचे तथा उसके अनुयायी पाश्चात्य समीक्षकों को व्यक्तिवादी कहना (जैसा प्राचार्य शुक्लजी ने साधारणीकरणवाले लेख में कहा है) उनके साथ अन्याय होगा । । कलावाद यद्यपि अभिव्यञ्जनावाद और कलावाद दोनों का लक्ष्य एक ही है तथापि उस लक्ष्य तक की पहुँच में इन दोनों के दृष्टिकोण में भेद है । अभिव्यञ्जनावाद ___ अभिव्यक्ति के सौन्दर्य पर बल देता है, जिसका फल यह कला और नीति होता है कि अभिव्यक्ति का ढंग मुख्य हो जाता है और अभिव्यक्ति का विषय गौण । कला का अर्थ है 'कला कला के लिए', जिसका अभिप्राय यह होता है कि कला नीति और उपयोगिता के बन्धनों से परे है । उसमें केवल सौन्दर्य का ही साम्राज्य है और उसकी जाँच का मापदण्ड सौन्दर्य ही होना चाहिए। . - वास्तव में क्रोचे का सौन्दर्य-विधान नीति और उपयोगिता के शासन से मुक्त है । यदि कला आन्तरिक ही है, मानसिक अभिव्यक्ति-मात्र है तो वह नीति के शासन से बाहर है क्योंकि नीतिकार की वहाँ तक पहुँच ही नहीं । कलाकृतियाँ अवश्य नीति का विषय बन सकती हैं । कलाकृतियों का सम्बन्ध स्वयंप्रकाशज्ञान से नहीं है वरन् वे व्यावहारिक क्रिया का फल हैं। व्यावहारिक क्रिया (Practical Activity) का नीति से सम्बन्ध है । कलाकार स्वयंप्रकाशज्ञान की मानसिक अभिव्यक्ति करने में विवश है, इसलिए वह दोषी नहीं ठहराया जा सकता किन्तु वह अपनी मानसिक अभिव्यक्ति को शब्दों या रेखाओं की अभिव्यक्ति देने में स्वतन्त्र है। यह व्यावहारिक क्रिया है और यदि उसकी अभिव्यक्ति समाज के प्रादों के विरुद्ध पड़ती है तो वह अपनी मानसिक अभिव्यक्ति को वाह्य प्रकाश न दे। कलाकार की स्वतन्त्रता मानसिक अभिव्यक्ति