पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२६९

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..................................... २३३ ध्वनि और उसके मुख्य भेद-ध्वनि के भेद और लक्षणलक्षणा पर आश्रित भेद को अत्यन्ततिरस्कृतवाच्यध्वनि कहते हैं उसमें वाच्यार्थ का अत्यन्त तिरस्कार हो जाता है। अभिधामूलक ध्वनि के दो भेद होते है--संलक्ष्यक्रमव्यङ्गयध्वनि और असंलक्ष्य क्रमव्यङ्गयध्वनि । संलक्ष्यक्रमव्यङ्गयध्वनि में वाच्यार्थ से व्यङ्गयार्थ तक जाने का क्रम संलक्षित रहता है और असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गयध्वनि में क्रम रहता तो हैं किन्तु वह व्यङ्गयार्थ इतना शीघ्र प्रस्फुटित होता है कि उसमें क्रम दिखाई नहीं देता है । ऐसा शतपत्र-पत्रभेदन्याय से होता है अर्थात् सौ पत्तों को जैसे एक कील द्वारा छेदने में वे एक साथ छिद जाते हैं, उनमें क्रम होता अवश्य है किन्तु दिखाई नहीं पड़ता, वैसे ही रस की प्रतीति एक साथ व्यजित हो जाती है । यद्यपि उसके व्यजित होने में थोड़ा समय अवश्य लगता है किन्तु वह समय इतना कम होता है कि दिखाई नहीं देता है। इसमें रस और भाव ही ध्वनित होते हैं और संलक्ष्यक्रमव्ङ्गयध्वनि में वस्तु और अलङ्कार ध्वनित होते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि ये भेद प्रयोजनवतीलक्षणा के हैं ; निरूढालक्षणा में व्यङ्गय नहीं होता है। नीचे के चक्र द्वारा ध्वनि के भेद स्पष्ट हो जायेंगे :- ध्वनि अभिधामूलक लक्षणामूलक (विवक्षितान्यपरवाच्य ) (अविवक्षितवाच्य ) संलक्ष्यक्रमव्यङ्गय · असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गय ( रसध्वनि) उपादानलक्षणाश्रित) (लक्षण लक्षणाश्रित) वस्तुध्वनि. अलङ्कारध्वनि अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य विशेष :-संलक्ष्यक्रमव्यङ्गय में व्यञ्जना की भांति ध्वनि भी (१) शब्द- शक्ति पर निर्भर होती है (अर्थात् जहाँ विशेष शब्दों के कारण व्यञ्जना होती है) और (२) अर्थ-शक्ति पर भी ( अर्थात् जहाँ शब्दों के बदल देने पर भी व्यञ्जना रहती है ) निर्भर होती है। एक तीसरे प्रकार में दोनों पर निर्भर होती है। ___ यस्तुध्वनि :--अर्थशयित के आधार पर वस्तु से वस्तु की ध्वनि 'निकलती है, वस्तु में विचार भी शामिल है :-