पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२६१

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शब्द-शक्ति-व्यञ्जना की व्याख्या २२५ व्यञ्जना हो सकेगी। प्रार्थी में यह प्रति बन्ध नहीं है । शाब्दी व्यञ्जना का दूसरी भाषा में अनुवाद कठिन होता है। प्रार्थी के अनुवाद में विशेष कठिनाई नहीं पड़ती। अभिधामूलक शाब्दी व्यञ्जना द्वारा भिन्नार्थक शब्दों का अर्थ निश्चित किया जाता है, केवल अभिधा तो विभिन्न अर्थ देकर विराम लेगी लेकिन उनमें से कौन अर्थ लागू होगा यह व्यञ्जना द्वारा निश्चित होगा । लक्षणामूला में व्यञ्जना के बे रूप पाते हैं जो लक्षणा में व्यञ्जित होते हैं। जितनी प्रकार की लक्षणा होती है उतने ही उसके रूप हो जाते हैं। भिन्नार्थक शब्दों में कौन अर्थ लगेगा, प्राचार्यों ने इसके नियम दिये हैं और वे अर्थग्रहण और व्याख्या में बहुत सहायक होते हैं। उनमें से कुछ के यहाँ भिखारीदासजी के 'काव्यनिर्णय' से उदाहरण दिये जाते हैं :- संयोग : 'हरि' शब्द बन्दर, शेर, विष्णु आदि कई अर्थों का वाचक है किन्तु जब उसका शङ्ख-चक्र से योग होता है तब उसका अर्थ विष्णु ही होगा :- 'संख चक्रजुत हरि कहे, होत विष्नु को ज्ञान ।' -भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पदार्थ निर्णय ७) वियोग : 'नग' के दो अर्थ होते हैं-पहाड़ और नगीना। अगूठी से उसका वियोग बतलाकर उसका अर्थ नगीने में निश्चित हो जाता है-'नग सूनो बिन मूदरी' । इसी प्रकार जब हम कहेंगे-'हिम के बिना नग की शोभा नहीं'-तब उसका अर्थ पहाड़ होगा । इसी प्रकार कहे धनञ्जय धूम बिन पायक जानो जाय' ( भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय, पदार्थ निर्णय ८)- 'धनञ्जय', अर्जुन को भी कहते हैं और पावक को भी। विरोध : प्रसिद्ध वैर के कारण भी अर्थ लगाने में सहायता होती है :- 'कहुँ विरोध तें होत है, एक अर्थ को साज । चन्दै जानि पर कहे, राहु ग्रस्यो द्विजराज ॥' ____-भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पदार्थनिर्णय १०) द्विजराज का अर्थ यहाँ पर ब्राह्मण न होगा, चन्द्र ही होगा। प्रकरण : भोजनशाला में 'सैन्धव' का अर्थ नमक होगा, घोड़ा नहीं।। सामर्थ्य : 'व्याल' हाथी और सर्प दोनों को कहते हैं किन्तु सर्प पेड़ नहीं तोड़ सकता है :- _ 'दास कहूँ सामर्थ ते. एक अर्थ ठहरात । व्याल वृक्ष तोरयो कहे, कुन्जर जानो जात ॥': ---भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पदार्थनिर्णय १४)