पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२००

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. श्राचार्य १. भट्टलोल्लद या २. श्रीशंकुक रस-निष्पत्ति दार्शनिक मत वाद रस की स्थिति संयोग का अर्थ निष्पत्ति का अर्थ मीमांसक उत्पत्तिवाद मूल रूप से अनुकार्यों में रहता है। कार्य-कारण-भाव उत्पत्ति नटादि अनुकताओं में आरोप होता आरोपवाद है। गौण रूप से सामाजिकों में अन- करण के चमत्कार से। नैयायिक अनुमितिवाद नट के अनुभावादि द्वारा अनु- गम्य-गमक-भाव अनुमिति कार्यों में अनुमेय, गौण रूप सेसामा- अथवा अनुमाप्य- जिकों में अनुकरण के चमत्कार से। अनुमापक-भाव। नट और अनुकार्य का चित्रतुरङ्गन्याय से तादात्म्य मानते हैं। सांख्यवादी भुक्तिवाद - अभिवा. भावकत्व द्वारा आल- भोज्य-भोजक-भाव भक्ति (आस्वाद) म्वनादिसाधारणीकृत होकर सामाजिक के भोग का विषय बनते हैं (भोजकत्व)। वेदान्ती अभिव्यक्तिवाद __व्यञ्जनावृत्ति द्वारा (भावकत्व व्यङ्गय-व्यञ्जक-भाव अभिव्यक्ति और भोजकत्व अनावश्यक हैं ) सहृदय सामाजिक में स्थायी भावों के संस्कारों की विभावादि के योग से अभिव्यक्ति, जिस प्रकार जल के योग से मिट्टी की अव्यक्त गंध व्यक्त हो जाती है। ३. भट्टनायक ४. अभिनवगुप्त सिद्धान्त और अध्ययन