पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१७९

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रस और मनोविज्ञान-रस और मनोवेग मनोवेग मन की वह भावपरक उद्वेजित अवस्था है जो किसी वाह्य या अन्तः ( स्मृतिजन्य, कल्पनाजन्य और कभी-कभी शारीरिक ). उत्तेजना के ज्ञान से उत्पन्न होकर शरीर की आन्तरिक स्थिति में परिवर्तन कर हमारी सहज वृत्तियों के सहारे कुछ प्रवृत्त्यात्मक या निवृत्त्यात्मक क्रियाओं को जन्म देती है। इस प्रकार मनोवेगं में तीनों प्रकार की मानसिक क्रियाएँ ज्ञान ( Knowing), भावना ( Feeling ) और सङ्कल्प (Willing ) रहती हैं। यह मात्रा घटती-बढ़ती रहती है । भावनापक्ष प्रायः सभी में प्रवल रहता है किन्तु कुछ का सुखद और कुछ का दुःखद, इस प्रकार सारे मनोवेग भिन्न-भिन्न प्रकार के पात्रों के सम्बन्ध में आकर्षण और विकर्षण, राग और द्वेष के रूप हो जाते हैं । अपने बराबर के प्रति आकर्षण प्रेम, छोटे के प्रति आकर्षण वात्सल्य और बड़ों के प्रति आकर्षण श्रद्धा का रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार अपने से हीन के प्रति विकर्षण घृणा है, अपने से अधिक शक्तिशाली के प्रति विकर्षण भय है तथा बराबर वाले के प्रति विकर्षण क्रोध कहलायगा । हास्यरस में ज्ञान का तत्त्व कुछ अधिक होता है, उत्साह और क्रोध में क्रिया का अधिकार होता है और निर्वेद में क्रिया का अभाव-सा रहता है । रति, हास्य आदि सुखद होते हैं और क्रोध, . शोक, घृणा आदि दुःखद होते हैं । निर्वेद और विस्मय में सुख और दुःख का समन्वय रहता है किन्तु रसरूप से सभी सुखद होते हैं। . .. रसों के वर्णन में स्थायी भावों द्वारा सूचित नौ या दस मनोवेग आजाते हैं, अब यह देखना है कि वे वर्णन कहाँ तक मनोवैज्ञानिक हैं। यहाँ पर हम . . ड्रमन्ड ( Margaret Drummand), और मेलोन रस और (Sydney Herbert Mellone) के 'Elements ...: मनोवेग : 'of Psychology' नाम की पुस्तक से एक उद्धरण देते . ..:. हैं जिसमें बतलाया गया है कि किसी मनोवेग के वर्णन में क्या-क्या बातें आवश्यक हैं :- __(1) The nature of its object ( the kind of situation which, when perceived, imagined. or remembered, arou- ses it). ... (2) Its affective quality, pleasant, painful or practi- cally indifferent; the massiveness or volume of the affection; its normal intensity. (3) Mode of influencing the will (active tendencies involved )... ... .. ............