पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१५२

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सिद्धान्त और अध्ययन 'देखी तुमरी कासी, लोगो देखी तुमरी कासी । जहाँ बिराजै विश्वनाथ विश्वेवरजी अविनासी ॥ श्राधी कासी भाट अँडेरिया यामन श्री सन्यासी । आधी कासी रंडी मुंडी रॉड खानगी खासी ॥ लोग निकम्मे भंगी गंजड़ लुच्चे बे-बिसवासी । महा श्रालसी झूठे शुहदे बे-फिकरे बदमासी ॥' 'मैली गली भरी कतवारन सड़ी चमारिन पासी । नीचे नल से बदबू उबले, मनो नरक चौरासी ॥' . -प्रेमजोगिनी (दूसरा गर्भाङ्क) आजकल के सुधारक भी तो ऐसे ही वर्णनों द्वारा समाज-सुधार की भावना जाग्रत करते हैं। - अद्भुत:-विस्मय इसका स्थायी भाव है। इस भाव के परिपक्व होने पर अद्भुतरस उपस्थित होता है :- 'श्राहचरज देखे सने, विस्मय बाढ़त चित्त । श्रद्ध त-रस बिस्मय बढ़े, अचल, सचकित निमित्त ॥' -देवकृत शब्दरसायन (चतुर्थ प्रकाश, पृष्ठ ४५) विस्मय का साहित्यदर्पण में लक्षण इस प्रकार दिया है :- 'विवधेषु पदार्थेषु लोकसीमातिवर्तिपु' ... -साहित्यदर्पण (२११७१) 'विस्फारश्चेतसो यस्तु स विस्मय उदाहृतः' -साहित्यदर्पण (३११८०) अद्भुत वस्तु अथवा अद्भुत कर्म करने वाला पुरुष इसका आलम्बन है । उसके गुणों की महिमा उद्दीपन है। वितर्क, पावेग, मोह, हर्ष प्रादि इसके सञ्चारी भाव हैं । अद्भुतरस का उदाहरण तभी उपस्थित होता है जब कि पालम्बन में कोई अद्भुत बात हो । सूक्ति-मात्र अद्भुत का उदाहरण नहीं बन सकता है :- 'देखो माई दधि-सुत मैं दधि जात । एक अचंभो देखि सखी री; रिपु में रिपु जु समात ॥' -सूरसागर (ना०प्र० स०, पृष्ट ३१९) यह अद्भुतरस नहीं है । इस फूट का अर्थ स्पष्ट कर देने पर कोई अचम्भे. की बात नहीं रह जाती। यह बात श्रीकृष्णजी के दधि खाने के सम्बन्ध में कही गई है। दधि-सुत का अर्थ है उदधि-सुत-चन्द्रमा अर्थात् मुख चन्द्र में दधि जाता है । चन्द्रमा और कमल का बैर है । मुख में कर-कमल जाते हैं।