पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/११५

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काव्य का क्षेत्र-कवि का सत्य का ही परिमार्जित रूप है । सौन्दर्य सत्य को ग्राह्य बनाता है। कविवर सुमिग्रा- नन्दन पन्त ने तीनों में एक ही रूप के दर्शन किये हैं :- . 'वही प्रज्ञा का सत्य स्वरूप हृदय में बनता प्रणय अपार; लोचनों में लावण्य अनूप, लोकसेवा में शिव अधिकार ।' --श्राधुनिक कवि : २ ( नित्य जग, पाठ ३६ ) अंग्रेजी कवि कीट्स ( Keats ) ने भी अपनी 'An Oda to a Grecean urn' नाम की कविता में सत्य और सौन्दर्य का तादाम्य करते हुए कहा है कि सौन्दर्य सत्य है और सत्य सौन्दर्य है, कवि का सत्य यही मनुष्य जानता है और यही जानने की __ आवश्यकता है :- 'Beauty is truth; truth beauty: that is all Ye know on earth, and all ye need to know.' -Keats (An Ode) .. सत्य और सुन्दर का तादात्म्य वा समन्वय भी सम्भव है, इसमें कुछ लोगों को सन्देह है । बिना काट-छाँट के सत्य सुन्दर नहीं बनता। कला में चुनाब आवश्यक है । कलाकार सामूहिक प्रभाव के साथ ब्युरे का भी प्रभाव चाहता है और ब्युरे को स्पष्टता देने के लिए काट-छाँट आवश्यक हो जाती है। इसके विपरीत कुछ लोग यह कहेंगे कि सत्य में ही नैसर्गिक सुन्दरता है। साहित्यिक संसार को जैसा-का-तैसा नहीं स्वीकार करता, वह विश्व को अपनी रुचि के अनुकूल परिवर्तित कर लेता है--'यथास्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते' ( अग्निपुराण, ३३६।१०) । शकुन्तला को दुष्यन्त ने लोकापवाद के भय से नहीं स्वीकार किया किन्तु लोकापवाद की भावना प्रेम के आदर्श के विरुद्ध है। वास्तविकता और आदर्श में समन्वय के अर्थ कविवर कालिदास ऋषि दुर्वासा के शाप की उद्भावना करते हैं । अँगूठी के खोजाने को दुष्यन्त की विस्मृति का कारण बतलाकर कवि ने प्रेम की रक्षा के साथ घटना के सत्य का भी तिरस्कार नहीं किया। दुष्यन्त उसको स्वीकार नहीं करता है किन्तु वह अपने भाव की भी हत्या नहीं करता। कथानक के ऐसे ही उलट-फेर को कुन्तल ने 'प्रकरण-वक्रता' कहा है। - क्या अपनी रुचि के अनुकूल संसार को बदल लेने को ही कविकृत सत्य की उपासना कहेंगे ? कवि सत्य की उपेक्षा नहीं करता वरन् सत्य के अन्त-