पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/११२

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सिद्धान्त और अध्ययन करती है, शायद वह सौन्दर्य-भावना की तृप्ति न कर सके। अंचलजी की 'किरण-बेला' में एक दुपहर का स्वप्न देखिए :-... 'गन्दी स्तब्ध कोठरी में अनजान । सो रहा अन्धा कुत्ता एक वहीं पर मैली शैया धानी चुनरी बिछाये लेटी नारी, घायल चील-मो अधनंगी अज्ञात, किसी श्रमजीवी की अभिशाप, चूसता फिर निचोरता सूखे स्तन भूखा शिशु ।' -किरण-बेला (दोपहर की बात, १ष्ठ ४२ तथा ४३) इस स्वप्न में वास्तविकता है, करुणा है किन्तु इसके सौन्दर्य को योगी ही देख सकते हैं, साधारण मनुष्य नहीं। ऐसे चित्रों में भी सौन्दर्य को अव- तरित करना सच्चे कलाकार का काम है। सच्ची सहानुभूति जाग्रत होने पर वीभत्स में भी करुणा की सरसता आजाती है। इस जाति कलाकार और आलोचक दोनों को ही साधारण भाव-भूमि से ऊँचे उठने की आवश्यकता है । ___सब स्वप्न झूठे नहीं होते। सवमें सत्य का कुछ-न-कुछ अाधार अवश्य रहता है। किसी में कम, किसी में ज्यादह । छायावादी कवि जो प्रकृति को मानवी रङ्ग में रंगा हुआ देखता है, रहस्यवादी जो परमात्मा से मिलन या विरह के गीत गाता है और प्रगतिवादी जो वर्तमान वर्गवाद को मिटाकर एक वर्गरहित समाज देखना चाहता है, सभी अपनी-अपनी रुचि, शिक्षा-दीक्षा, आशा-अभिलाषाओं के अनुकूल स्वप्नद्रष्टा हैं ।