पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/७७

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सितार मालिका प्रारम्भ में आपको इसमें कुछ अड़चन प्रतीत होगी; परन्तु अभ्यास हो जाने पर यह क्रिया बहुत अधिक सहायक होगी। अब जो भी राग आपको बताना हो, उसके अनुसार सितार के परदों को सरका कर, किन्हीं भी परदों पर 'दिड दा दिड दा डा दा दा डा' को इस प्रकार बजाइये कि दा दा डा का पहिला दा, अर्थात् 'सम' का बोल जहां तक हो, उस स्वर पर आये जो उस राग का वादी स्वर है। उदाहरण के लिये यदि आप यमन, भूपाली या जैजैवंती आदि राग बजाना चाहते हैं, तो जहां तक हो, यमन व भूपाली में शुद्ध गान्धार पर और जैजैवंती में ऋषभ स्वर पर ही आपकी गत का सम आना चाहिये। जब यह क्रम किसी कारण से संभव नहीं हो पाता तो सम के स्थान षड्ज व पंचम भी बना लिये जाते हैं। परन्तु, यह कोई ऐसा आवश्यक नियम नहीं है कि हर एक गत का सम या तो उसके वादी स्वर पर हो, या 'सा' अथवा 'प' पर ही। आप अपनी रचना में जहां कहीं भी सम रखना चाहें, रख सकते हैं, परन्तु प्रारम्भ में इन नियमों के अनुसार गत बनाने में विद्यार्थी को अधिक सुविधा प्रतीत होगी, ऐसा मेरा अनुभव है। अब उदाहरण के लिये कुछ गतें इसी आधार पर बनी हुई देखिये:- राग यमन- पप ग ग ग रे सा, निनि ध म रेरे ग मम प मग दिर | दा दिर दा रा दा दा रा, दिर दा दिर दा रादा दा रा, ३ X इसी प्रकार का एक दूसरा उदाहरण भी इसी राग में देखिये:- गग रे निनि सा रे ग ग ग, पप | म पप दिड दा दिर दा रा दा दा रा, दिर दा दिर दा घ sh पाग सा दा X ३ रादा O पप ग ग my इन दोनों गतों में सम को वादी स्वर 'गांधार पर ही रखा गया है, अब इसी प्रकार के अन्य उदाहरण कुछ दूसरे रागों में भी देखिये:- राग भूपाली—वादी स्वर गांधार है । पुपु । ध सासा सा रे ग ग ग, गुग रे सा. दिर दा दिर दा रा दा दा रा, दिर | दा दिर दा रा IX कभी कभी सम पर आने के लिये पन्द्रह्वीं और सोलहवीं मात्रा में दा रा बजाने के स्थान पर दादिर दारा भी बजा देते हैं । इससे सम और अधिक सुन्दर सुनाई देता है। जैसे:- दा ३