पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/६७

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सितार मालिका दूसरी तान में मन्द्र और मध्य धनिसा साथ-साथ लिये गये हैं। (३) ध नि सा, ध | नि सां, मं में सां नि धु म ग सा नि सा इसमें भी ऊपर की तरह धनिसा को दोनों सप्तकों में लेकर, तार सप्तक के मध्यम से एकदम अवरोही लेली गई है। (४) ध नि सा, ध नि सां (गं मं सां) नि ध म ग सा नि सा (५) ध नि सा, ध नि सां (ध गं सां) नि म ग सा नि सा (६) ध नि सा, ध नि सां (ध म | ध) नि । म ग सा नि सा नं० ४-५ और ६ की तानों में कोष्ठ में दिये गये स्वरों में थोड़ा अन्तर है, बाकी स्वर एक समान हैं। अब आगे की तीन-चार तानों में केवल ७ वें, ८ वें, वे और १० चे स्वरों में थोड़ा सा अन्तर करके, शेष स्वर समुदाय को ज्यों का त्यों रखकर कुछ नवीन तान बनाते हैं। इस प्रकार इस थोड़े से अन्तर से ही यह सारी तानें पृथक् समझी जायेंगी । (७) ध नि सा मुम ग म धु म म ग सा नि सा सा गम ग म धनि सां ध मग सा नि सा (६) नि सा ग म ग धु म ग सा नि सा (१०) ध नि सा ग म ग सा ग । म नि धु म ग सा नि सा अब कुछ तानें इस प्रकार की देखिये, जिनमें मध्य के आठ स्वरों में थोड़ा बहुत अन्तर है, अन्यथा प्रत्येक का प्रारम्भ तो धैवत से ही है और तान की समाप्ति गसा पर की गई है। जैसे:-