पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/६३

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सितार मालिका का विवादी के नाते प्रयोग क्षम्य होगा । अतः राग में जो-जो स्वर लग रहे हों उनके दूसरे भेदों को विवादी स्वर कहते हैं । जो स्वर बिल्कुल प्रयोग में नहीं आयें, उन्हें वर्जित कहते हैं । इस परिभाषा के अनुसार 'कल्याण' राग में कोमल 'रेगाधानि' और शुद्ध मध्यम ये पांच स्वर विवादी हैं। इसे और अधिक स्पष्ट समझने के लिये आप एक राग मालकोष और ले सकते हैं। मालकोष में 'रे पा' वर्जित हैं, तथा 'गामाधानी' कोमल हैं, अतः मालकोष के विवादी स्वर, तीव्र 'गामाधानी हैं। इसीलिये भैरवी में भी आज बारह स्वरों का प्रयोग खूब दिखाई देता है। अलाप में तानें बजाना-- पिछले अध्याय में हमने अलाप में तानें बजाने का उल्लेख किया है। थोड़े काल में अधिक स्वर बजा देने की क्रिया को तान कहते हैं। उदाहरण के लिये आप घड़ी की एक 'टिक' जितने काल में कोई भी एक स्वर बोलिये । मान लीजिये कि आपने चार टिकटिक में चार स्वर 'सारेगामा बोले, तो हम इसे बराबर की तान कह सकते हैं। परन्तु यदि आपने एक एक टिक में दो-दो स्वर बोल दिये, अर्थात् आपने एक टिक में 'सारे' कहा और दूसरी में 'गामा', तीसरी में पुनः 'सारे और चौथी में पुनः 'गामा', तब आपका काल तो चार ही टिक टिक का रहा, परन्तु स्वर आपने दो बार 'सारेगामा' 'सारेगामा' कह दिये। अतः यदि हम एक टिक को एक मात्रा कहें तो यह स्वर एक मात्रा में दो-दो होंगे । इसे ही संगीत की भाषा में दुगुन की तान कहेंगे। यदि आप एक टिक अथवा एक मात्रा में तीन-तीन स्वर जैसे सारेगा कहने लगे तो यही तान आपकी तिगुन लय की कहायेगी। यदि आप एक मात्रा में अथवा एक टिक में एक दम सारेगामा कहदें तो यही तान आपकी चौगुन लय की कहायेगी। इसी प्रकार एक मात्रा में पांच स्वरों के गाने की क्रिया को पचगुन और छः स्वरकी तान को छःगुन आदि कहेंगे। राग को तानें बजाने के लिये, जिस राग का आप अलाप कर रहे हैं, उन्हीं अलाप के स्वरों को, थोड़े काल में अधिक-अधिक बजाना प्रारंभ कर दीजिये, यही आपकी ताने कहायेंगी। तानों को रट कर याद करने की आवश्यकता नहीं है, वरन् कल्पना के सहारे, तानों को भी अलाप के ढंग पर स्वयं निर्माण करने का प्रयत्न करना चाहिये। वैसे गति बजाते समय ताने बजाने के क्रम का आगे के अध्यायों में वर्णन किया जायेगा।