पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/५२

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छठा अध्याय परन्तु फिर भी सितार बजाने में कुछ ऐसे भी रहस्य हैं कि आप जब चाहें तभी श्रोताओं से बरबस वाह-वाह कहला सकते हैं। वाह-वाही लेने के लिये गिटार और सारंगी के ढंग की मींड का सहारा लेना पड़ता है। पहिले गिटार के ढंग की मींड लेकर श्रोताओं को स्वर स्पष्ट सुना दिये जाते हैं। फिर तुरन्त वही स्वर समुदाय सारंगी के ढंग की मींड से बजाये जाते हैं। लय दोनों ढंगों में समान ही रहती है। बस, जहां गिटार-टाइप की मींड के बाद आपने उन्हीं स्वरों पर सारंगी टाइप की भीड ली, कि श्रोताओं ने 'वाह वाह' कहा। आप संपूर्ण अलाप बजाते समय अधिक से अधिक चार या पांच बार भिन्न-भिन्न स्वर समुदायों पर इसी क्रिया को कर सकते हैं। उदाहरण के लिये एक दो स्वर समुदायों को बजाने का ढंग देखिये । आप ऊपर वर्णित दाड़ा दाड़ा बजाते हुए मींड से 'धा' के परदे पर धनीनीनी धनीनीनी धनीनीनी बजाकर, धप मगरेस पर लौट आइये। गिटार-टाइप में प्रत्येक स्वर पर मिज़राब लगाइये । जब श्रोताओं को यह स्पष्ट हो जाये कि आप मींड से धनीनीनी स्वर बजा रहे थे, तो तुरन्त ही इसी स्वर समुदाय अर्थात् धनीनीनी, धनीनीनी, धनीनीनी को इस प्रकार बजाइये कि धनीनीनी बजाते समय मिजराब केवल 'धा पर पड़े और तीनों 'नी' तार खींच कर गमक द्वारा ही निकलें। बस, ज्यों ही श्रोताओं को यह मौंड़ और गमक सुनाई देंगी वह तुरन्त वाह-वाह कहने लगेंगे। दूसरे उदाहरण में 'धनीसरे संनीधा' को केवल 'धा' के परदे पर इस प्रकार बजाइये कि प्रत्येक स्वर पर मिज़राब लगती रहे। अब पुनः 'धा' पर ही इसी स्वर समुदाय सारंगी-टाइप में बजा डालिये, अर्थात् केवल एक मिजराब 'धा' के स्वर पर ही लगाइये । सितार के सांस रहते रहते शीघ्र ही 'धा नी सं रेसं नी ध' खींच डालिये। आप देखेंगे कि यदि आपकी मींड सच्चे स्वरों की खिंच गई तो श्रोताओं को वाह-वाह कहनी ही पड़ेगी। तीसरा उदाहरण 'पध धनी नीम' का हो सकता है । पहिले श्राप 'पध' में 'पा' पर 'धनी' में 'धा' पर और नीस में 'नी' पर मिजरावें लगाइये। एक बात का ध्यान रखिये कि यह सारी मींड खिंचंगी 'पा' के परदे पर ही। जब आपने इसे खींच लिया तो अब इसीको पुनः एक ही मिज़राब में 'पा' के परदे पर खींच डालिये। बस, सुनते ही लोग वाह-वाही देने लगेंगे। इसी प्रकार धनीसं धनीसं धनीसंनी धप' को भी पञ्चम के परदे से ही बजाया जा सकता है। इस सबका सारांश यही है कि जब गिटार-टाइप की मींड को उन्हीं स्वरों पर सारंगी टाइप में खींचा जाता है तो वाह-वाही मिलती है । नोम तोम--- कभी कभी मींड, गमक के अलाप को सुनते-सुनते श्रोताओं का मन ऊबने लगता है। अतः नोम तोम के अलाप द्वारा उन्हें ऊबने नहीं दिया जाता। इस अलाप में 'बाज' के तार का ही प्रयोग अधिक किया जाता है। मिज़राब को तबले के बोलों के आधार