पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/५१

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सितार मालिका उदाहरण के लिये मध्य सप्तक में 'पा' से एक दम सां पर मीड द्वारा इस प्रकार जायें कि पा से एक दम सां सुनाई दे। अथवा अन्दाज से ही तार को इतना खींच लें कि पहिले ही 'सो' तक पहुँच जायें और मिजराब लगा कर 'लो' से 'पा' पर एक दम इस 'पा सां' या 'सां पा' की मींड को वायलिन के ढंग की मीड आ जायें कहेंगे । अलाप में जहां आपको जैसी मींड मधुर प्रतीत हो, प्रयोग में ला सकते हैं । गमक- मींड का अंग पूरा दिखाने के बाद आप पिछले अध्याय में बताये हुए ढंग से गमक का भी प्रयोग करते चलिये। अलाप के इस अंग में मींड व गमक दोनों का मिश्रण तानों के साथ चलता है। तानें तैयार हो जाने पर अलाप में और भी मधुरता आ जाती है। तानें प्रायः पड्ज पर ही समाप्त की जाती हैं। लय के साथ चिकारी का भी प्रयोग बढ़ जाता है । तानों को तैयार करने के लिये दोनों हाथों की तैयारी का उपाय- दोनों हाथों की तैयारी करने के लिये आप पहिले 'सा रे गा मा पा धा नि सा' पर दिदिड़ बजाइये । जब दिड़ दिड़ साफ बजने लगे तो सीधे हाथ को उसी लय में रखिये और बांये हाथ से 'दि' पर 'सा' और 'ड' पर 'रे', 'दि' पर 'गा' और 'ड' पर 'मा' इसी प्रकार बजाते रहिये ।' इस प्रकार आपका सीधा हाथ तो उसी लय में (जिसमें कि दिड़ बजा रहा था) चलता रहेगा और बाएँ की गति दुगनी हो जायेगी। श्रापको ऐसा प्रतीत होगा कि आप बढ़ी हुई लय में 'दा' 'डा' 'दा' 'डा' बजा रहे हैं । हाथ से अब बाएँ हाथ को तो इसी 'दा'डा' वाली लय में रखिये और सीधे हाथ से प्रत्येक स्वर पर 'दिड बजाना प्रारम्भ कर दोजिये । जव आप इस प्रकार दिड़ बजाने में हाथ साध लें तो अब सीधे हाथ को उसी लय में चलने दीजिये और बाएँ पुनः 'दि' पर 'सा' और 'रे' पर 'डा' बजाने का प्रयत्न करिये । इस प्रकार आप पुनः अत्यन्त बढ़ी हुई लय में 'दा' 'डा' 'दा' 'डा' बजाने लगेंगे। इस बढ़ी हुई लयके 'दा' 'डा' 'दा' 'डा' में अलाप की तानें बड़ी मधुर लगेंगी। इन्हीं तानों में श्राप मींड और गमक की तानों का प्रयोग कर सकते हैं। श्रोताओं से वाहवाही कैसे ली जाती है ? कुछ लोगों का अनुमान है कि जिन सितार वादकों के हाथ में मिठास होता है, वह श्रोताओं से वाहवाही ले ही लेते हैं। किसी अंश तक यह बात ठीक हो सकती है ।