पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४९

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सितार मालिका 'साका साका सासा का सा' आदि मिजराब का प्रयोग करते हैं। इसमें अन्तिम 'सा' पर जोर होता है। नोम् तोम् के अलाप गायन में भी यही क्रिया 'तननन' नेताऽनोम्' आदि के उच्चारण से प्रकट होती है, जिसमें अन्तिम नोम् पर जोर दिया जाता है। संहार को दिखाने के लिये सितारियों में दो क्रम दिखाई देते हैं । एक तो वह जिसमें संहार की मिजराबों की लय सदैव विलम्बित रहती है। दूसरी वह, जिसमें तानों की लय बढ़ती रहने के साथ साथ संहार भी उसी लय में समाप्त होता है, जिस लय में कि तान चल रही है। वादकों को जो भी ढंग सुन्दर लगे अपना सकते हैं। लेखक को जिस लय में तान चल रही हो, उसी लय में संहार करना अधिक उत्तम लगता है। । अलाप के पांच अङ्ग-- सितार में अलाप को पांच भागों में विभक्त कर लिया गया है। यह क्रम से 'स्वर गुञ्जन' 'मीड', 'गमक', 'नोन तोम्' और 'झाला' हैं। जिस प्रकार गायन में अलाप के चार भाग स्थाई' 'अन्तरा' 'संचारी' और 'आभोग' होते हैं। (जो ध्रुपद में स्पष्ट दीखते हैं) उसी प्रकार सितार में भी यही चार भाग होते हैं, जो ऊपर दिये गये पांच अङ्गों के आधार पर चलते हैं। तो आइये, पहिले इन्हें स्पष्ट रूप से समझ लें। स्वर गुञ्जन-- अलाप प्रारम्भ करते समय सर्व प्रथम इसी क्रिया को काम में लाते हैं। इसमें प्रत्येक स्तर पर इतनी देर तक ठहरा जाता है जितना कि सितार में सांस रहता है। साथ में दो बातों की ओर विशेष ध्यान रखा जाता है कि जिस स्वर पर आप ठहरें, उसी स्वर की तरब भी स्पष्ट बोलने लगे। और जो भी स्वर आप लगा रहे हैं वह एक दम खड़ा न लगकर, आगे-पीछे की ओर से आता हुआ सुनाई दे । उदाहरण के लिये यदि आप बिल्कुल प्रारम्भ में 'सा' बजाना चाहते हैं तो एक दम 'सा' पर अँगुली मत रखिये। परन्तु मन्द्र सप्तक के किसी स्वर पर मिजराब लगाकर, जितनी भी जल्दी हो सके, घसीट या मींड की क्रिया के द्वारा तुरन्त 'सा' पर आकर ठहर जाइये । यदि आपने 'सा' पर आने में देर कर दी तो यही क्रिया 'नि' से 'सा' की मींड कहलायेगी। यदि आपने एक चौथाई काल 'नि' और 'तीन चौथाई' 'सा' पर लगाया तो यही 'सा' पर 'नि' का कण कहायेगा । अतः यह क्रिया इतनी शीघ्र होनी चाहिये कि सुनने वालों को यह न तो मींड ही मालूम दे और न कण, बल्कि वे केवल यही समझे कि यह क्रिया किसी भी पीछे के स्वर से की गई है, परन्तु वह उस स्वर को सरलता से पकड़ न सके जिससे तार खींचा गया था । फिर ज्यों ही आप 'सा' पर आकर ठहरें तो तरब बड़ी स्पष्ट बोलनी चाहिये। आप देखेंगे कि जब आपका 'सा' बिल्कुल शुद्ध बोलने लगा 'सा' का नाद भी बड़ा प्रतीत होने लगेगा। अब ज्यों ही नाद समाप्त होने को आये कि एक प्रहार चिकारी पर भी कर डालिये; यही आघात 'भराव' का आघात होगा।