पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४८

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२७ छठा अध्याय सितार में अलाप या जोड बजाना अलाप-- गायन में जिसे अलाप कहते हैं, सितार में उसी क्रिया का नाम जोड़ है । जोड़ अथवा अलाप के अर्थ हैं 'राग का स्वर विस्तार' । आप जिस राग की गति बजाना चाहते हैं, उस राग का परिचय श्रोताओं को करा देने के अर्थ हैं उस राग का स्वर विस्तार करना, अथवा उसका अलाप या जोड़ बजाना । अतः जिस राग का भी अलाप करना हो, उस राग का नाम, उसके ठाठ का नाम, स्वर, जाति, वादी, संवादी, पकड़ और गान- समय का ध्यान अवश्य रखना चाहिये । कारण कि इन्हीं सब के आधार पर जोड़ अङ्ग बजाया जायेगा। भराव-- अलाप प्रारम्भ करने से पूर्व भराव' का अर्थ समझ लेना चाहिये। इसका अर्थ स्पष्ट 'भर देना है। जब आप किसी स्वर पर कुछ ठहरना चाहते हैं तो मिजराब लगाने के कुछ देर बाद उस स्वर का नाद छोटा होता जायेगा। यहां तक कि कुछ देर में नाद समाप्त ही हो जायेगा । ज्यों ही यह नाद समाप्त हो, आप एक आघात चिकारी पर और करदें । जब चिकारी से मिजराब हटे तब दुबारा, उसी स्वर के लिये अथवा किसी दूसरे स्वर के लिये बाज के तार पर मिजराब लगे। अर्थात् प्रत्येक स्वर का मांस समाप्त होने पर, और दूसरा स्वर बजाने से पूर्व, एक चिकारी का आधात और करदें । इस प्रकार आपने 'बाज' के तार पर पड़ने वाली दोनों मिजराबों के बीच के खाली काल को 'का' से भर दिया। फलस्वरूप आपके अलाप की लय घट गई । अतः अलाप में जब दो स्वरों के बीच के नाद को लम्बा करना होता है तो बीच-बीच में चिकारी भी बजाते चलते हैं। इसी चिकारी पर, इस प्रकार पड़ने वाली मिजराब का नाम 'भराव' है। अलाप की लय- आपके सितार का जितना लम्बा सांस हो, अर्थात् एक स्वर पर मिजराब लगाने के बाद, जितनी देर तक स्वर सुनाई देता रहे, यही आपके अलाप की एक मात्रा समझिये। उसी लय के सहारे आप अलाप प्रारम्भ करिये। इसी लय को और अधिक धीमी करने के लिये भराव की भी सहायता ली जा सकती है। संहार अथवा प्रलाप का सम-- चूंकि अलाप तालबद्ध नहीं होता अतः इसमें सम बताने के अर्थ हैं कि हमने एक अलाप को समाप्त कर दिया। इस प्रकार अलाप की समाप्ति के स्थान को दिखाने के लिये