पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२०६

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इक्कीसवाँ अध्याय . अवरोह में केवल गान्धार ही वर्जित है। अतः जाति औडव-पाडव है। कुछ लोग इसमें कोमल निषाद का भी प्रयोग कर देते हैं। परन्तु यदि इस स्वर को बिल्कुल ही न लगाया जाय तब भी राग हानि नहीं होती। कभी-कभी गान्धार को भी मध्यम से पञ्चम पर जाते समय कण रूप से, अथवा गुप्त रूप से लगा देते हैं जैसे म गप। आरोह में षड्ज से एकदम मध्यम पर जाने से राग तुरन्त स्पष्ट हो जाता है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है। आरोह-सा म प ध नि सां और अवरोह सां नि ध प, ध प, म, सा रे सा है। मुख्यांग, सा म, म प, म प ध प, म, सा रे, सा है। इस राग में टिकाव के स्वर म, प और ध हैं। अब इसी आधार से अलाप देखियेः- सा म, म प, ध, प, म प ध प सां, प ध म प ध म, प ध नि ध प, ध म प ध प म, म प ध ध प प, म ध प म, प ध म प, म, रे, सा । सा रे सा म, म प, प ध प म, म प सां, ध प म प ध म, सां रें सां नि ध प म प ध प म, म प ध नि सां नि ध प म, म प ध म प ध म, प ध ध, म प प, ध प प ध म, प ध म प ध प म, रे, सा। सारे सा सा, म म रे सा, प ध म प म म रे सा, सां रें सां नि ध प म प ध प, म म रे सा, मं मं रें सा, रें सां नि ध प, ध नि ध प म प ध प म म रे सा, सां रे नि सां, प ध म प, ध नि ध प म प ध प, म म प प, म म रे सा। अब इसी आधार पर तानें देखिये:- १-सा सा म म रे सा, सासा म म प प म म रे सा, सा सा म म प प ध प म प म मरे सा, सा सा म म प प ध ध नि नि ध प म प ध प म म रे सा, सा सा म म पप ध ध म प सां रें सां नि ध प म प ध प म म रे सा, सा सा म म प प ध प म प ध नि सां रें मं मंरें सा, रें रें सां नि ध प म प, म प ध प म म रे सा । २-म म रे सा नि सा, म प ध प म म रे सा नि सा, म प ध नि सां नि ध प म प ध प म म रे सा नि सा, सांरें सां नि ध प, म प ध म प ध में प, ध नि सां ध नि सां धनि, सां नि ध प म प ध प, म म रे सा नि सा, मं मं रें सां नि सां, रेंरें सां नि ध प म प ध प, ध नि नि ध नि नि ध नि ध प म प ध प, म म रे सा नि सा । ३-सा म रे सा नि सा म, म नि ध प म प सां, सां मंरें सां नि सां मं, रे सां नि धम पध, ध प म प ध प म, म म रे सा नि सा रे, सा । आदि ७--खंभावती इस राग में दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। आरोह में गान्धार तथा निषाद वर्जित हैं अवरोहो संपूर्ण है अतः जाति औडव संपूर्ण है । वादी षड्ज तथा संवादी पञ्चम है। इस राग में अनेक रागों की छाया दिखाई देती है। सां से मांड, प ध सां, नि नि ध सां से सिंदूरा, और सां नि ध प म ग से खमाज । परन्तु खमाज की छाया को अलग करने के लिये गान्धार से मध्यम स्वर पर जाकर, षड्ज पर आते हैं, जैसे ग मसा। कुछ लोग म प नि नि सां लेकर भी आरोह करते हैं, परन्तु यह जैसे, रे म पध