पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२०५

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सितार मालिका । ५–कालिङ्गड़ा- इस राग में ऋषभ-धैवत कोमल और शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। यही स्वर राग भैरव के भी हैं। अतः भैरव से अलग करने के लिये धैवत और ऋषभ स्वर पर जो कि क्रम से भैरव के वादी और संवादी स्वर हैं, अधिक आन्दोलन नहीं देते। इनके स्थान पर, इस राग के बादी-सम्वादी स्वर, जो कि क्रम से पंचम और षड्ज हैं, उन पर ही विशेष बल दिया जाता है । बार-बार पञ्चम पर टिकाव करने से, और अलाप को समाप्ति पर गान्धार पर न्यास करने से यह राग स्पष्ट होता है। उत्तरांग में निषाद पर कुछ अधिक बल रखने से भी यह भैरव से पृथक हो जाता है। जाति सम्पूर्ण- सम्पूर्ण है। और गान-समय रात्रि का अन्तिम प्रहर है। आरोही सा रे ग म प धु नि सां और अवरोही सां नि ध प, म प ग म ग, म ग रे सा है। मुख्यांग, प, ध म प ग म ग, रे सा है। अलाप निम्न प्रकार है:- नि सा रे ग, रे ग म प, म प ध प ग म ग, ग म प ध प, ध म प, ग म प, ग म प ध नि ध प, म प म ग म ग रे सा । ग रे सा रे ग म प, ध नि सां नि ध प, म प मग, रे ग म प ध नि सा रे सां नि ध प, मप धुप म ग, गम पधु नि सां, धनि सारे सां, निसां रेसां नि ध प, धूप मप ग म ग, ग रे गम प, म ग रे सा। पधु प नि सां, सां रेंग रे सां, निसां सां नि, धुनि सांनि धे, पधु निध प, म प ध प, ध पधु सां, नि रे सा रे ग में गं, रे सां, ध प म प ग म ग, पध पध नि सां, पधु निसां नि ध प, गम पग म, ग रे ग म ग, रे ग म ग रे सा । अब तानें भी इसी आधार पर देखिये:- पहिली तान में क्रम से एक-एक स्वर आगे की ओर बढ़ते रहेंगे । १-सा रे ग ग रे सा, सा रे ग म प प म ग रे सा, सा रे ग म प प ध प म ग म प म गरे सा, सा रे ग म प ध नि ध प म ग म प प म ग रे सा, सा रे ग म प ध नि सां नि ध प म ग म प प म ग रे सा, सा रे ग म प ध नि सां रे रे सां नि धुप म म म प म ग रे सा। २-अब अवरोही को प्रधान रखते हुए एक-एक स्वर बढ़ाते हैं:-

-ग म प प म ग रे सा,

म प ध प म ग रे सा, पधु नि धु, म प ध प, ग म प म, म ग रे सा, ध नि सां नि, प ध नि धु, म प ध प, म ग रे सा, सां रे सां नि ध नि ध प, म प ध प, म ग रे सा । अब एक तान में अलंकारों को रखने का प्रयत्न किया गया है:- ३-सा रे रे, रे ग ग, ग म म, म प प, प ध ध, ध नि नि, नि सां सां, सा रे ग ग म गरे सा, ग म प प ध प म ग, प ध नि नि सां नि ध प, म ध प म, ग प म ग, ग म ग रे रे सा सा । श्रादि . ६-केदार यह राग कल्याण अङ्ग का माना जाता है। इस राग में दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। श्रारोह में ऋषभ और गान्धार दोनों स्वर एक दम वर्जित हैं और