पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१९४

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बीसवाँ अध्याय १६५ कृष्णराव रघुनाथराव आष्टे वाले कृष्णराव जी का जन्म सन् १८४१ ई० में हुआ । इनका पूरा नाम कृष्णराव रघुनाथराव आष्टे वाले था। सरदार नानासाहेब के नाम से इनकी ख्याति थी । सरदार नाना साहब ने किशोरावस्था से ही अपने पिता रघुनाथराव जी से सितार शिक्षा ग्रहण की। अविरल साधना, विद्वान पिता की सीनाबसीना शिक्षा और ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा ने कृष्णराव के सितार वादन में चमत्कार भर दिया । कुछ वर्षों की तपश्चर्या के बाद ही इनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ सितारवादकों में होने लगी। नाना साहेब के सितार वादन का प्रत्यक्ष रसास्वादन करने वालों के कथनानुसार तत्कालीन युग में उन के समान विलम्बित लय में काम करने वाला कोई व्यक्ति न था । गत का काम बहुत तैयार, सच्चा और स्पष्ट किया करते थे। विशाल हृदय और मधुर स्वभाव होने के कारण सरदार नाना साहेब के घर, आये-दिन संगीतज्ञों का आवागमन रहता था । व्यवहार कुशल नाना साहेब ने तत्कालीन अनेक महान संगीतज्ञों का आदर-सत्कार करके उनकी विशेषताओं को अपनी वादन शैली में समाविष्ट किया। बन्देअली खां साहब से भी आपने बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान युग में इनके पुत्र भैया साहब उच्च कोटि के सितारवादक माने जाते हैं। यद्यपि भैया साहब काफी वृद्ध हो चले हैं, फिर भी अधिकांश समय संगीत शिक्षण तथा उसके प्रचार में व्यतीत करते हैं।