पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१९

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४ सितार मालिका 'चे मालूम से' से मेरा आशय यही है कि घोड़ी इस प्रकार की दिखाई न देने लगे। बल्कि जब ब्लेड को घोड़ी की चौड़ाई पर रगड़ा जाये तो किनारों पर हाथ को तनिक सा दबाकर रगड़ें। और जब ब्लेड घोड़ी को घिसते-घिसते, बीच में आये तो हाथ का दबाव कम कर देना चाहिये। इस प्रकार घोड़ी में एक ऐसी गोलाई सी आजायेगी कि तार यद्यपि संपूर्ण घोड़ी पर ही रखा हुआ दिखाई देगा, परन्तु वह घोड़ी को केवल एक ही स्थान पर छुएगा। भिन्न प्रकार की मोटाई के तारों को रखने के स्थानों को भिन्न प्रकार से ही घिसा जायेगा। जब आपके विचार से जवारी भली प्रकार खुल जाय तो फिर बाज के तार को घोड़ी पर रखकर चढ़ाइये। यदि ध्वनि प्रत्येक परदे पर साफ और दमदार, लम्बे सांस की उत्पन्न हो तो समझिये कि जवारी खुल गई। अब प्रत्येक परदे पर तार को दबाकर बजा लीजियेगा। यदि सारे परदों पर ध्वनि एक जैसी ही सुनाई दे तो जवारी ठीक होगई समझिये। यदि यह किसी भी परदे पर भिन्न प्रकार की बोलती है तो धीरे-धीरे पुनः तार हटाकर घोड़ी को इसी प्रकार रगड़िये। रगड़ने के उपरान्त फिर तार चढ़ाकर बजाइये। जब तक प्रत्येक परदे पर ध्वनि एक जैसी ही न हो जाये, इसी प्रकार करते रहिये। एक बात का विशेष ध्यान रखिये कि कहीं आप घोड़ी को इतने जोर से न रगड़दें कि वह सारी ही घिसकर बराबर होजाये। एक बार की जवारी खोलने के लिये लगभग एक कागज जितनी मोटाई तक ही घिसना काफी होगा। तरब वाले सितारों में कभी ऐसा होता है कि जिस परदे पर सरब स्वर में मिली हो, वह स्वर तो बड़ा उत्तम बोलता है; शेष परदों पर तार ठस बोलता है। अतः जवारी ठीक प्रकार खुलने पर भी यह भ्रम हो जाता है कि अभी ठीक प्रकार नहीं खुली। इसलिये जवारी खोलते समय या तो किसी कपड़े से तरबों को सटा दिया जाये ताकि उनसे ध्वनि उत्पन्न न हो, या केवल इसी बात का ध्यान रखा जाये कि तार सब परदों पर ठीक एक प्रकार की ही ध्वनि देरहा है अथवा नहीं। थोड़े अभ्यास से यह क्रिया शीघ्र ही समझ में आजायेगी। फिर आपको अपने सितार अथवा वीणा की जवारी खुलवाने के लिये किसी अन्य पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा। इतनी बात अवश्य है कि जवारी खोलने का अभ्यास एकदम नहीं होता, बल्कि कई वार करते-करते ही उसका अभ्यास पड़ेगा। कभी-कभी अचानक थोड़ी सी देर में ही घोड़ी अनुकूल घिस जाने पर जवारी खुल जाती है और कभी-कभी घण्टों लग जाते हैं, अतः इसका अभ्यास प्रारम्भ में काफी करना चाहिए तब हाथ स्वतः मध जाता है। तार- अब आती है दूसरी बात 'तार के अच्छेपन' की। मुझ प्रायः लोग पूछा करते हैं कि जिस स्थान पर सितार या वीणा की मरम्मत करने वाले नहीं होते, वहां इनके तार मिलने में बड़ी कठिनाई होती है। ऐसी परिस्थितियों में यदि बाजार में मिलने वाले पीतल या स्टील (फौलाद) के तार काम में ले लिये जायें तो क्या आपत्ति होगी? इस विषय की मुख्य बात तो यह है कि जो भी तार प्रयोग किये जायें वह