पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१३०

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तेरहवां अध्याय १०६ दुगुन की तानें बजाना- जब इस प्रकार अभ्यास हो जाये तो प्रत्येक गिनती पर 'दिड़ दिड' बजाना शुरू कर दोजिये । गिनतियों को भी दो भागों में बोलिये जैसे-'एऽक' दोऽनो तीऽन' 'चाऽर' 'पांऽच' 'छः अ' 'साऽत' 'श्राऽठ' 'नौऽओ' 'दास' 'ग्यारह आदि । इस प्रकार आपकी जो मिजराब सा पर 'दिड' बजायगी, उसे आप 'दि' पर 'ए' और 'ड' पर 'क' बोलिये । जब इस प्रकार आप सारी गिनतियों का अभ्यास करलें, तब प्रत्येक 'दि' और 'ड' पर अलग अलग स्वर बजाना शुरू कर दीजिये। अर्थात् अब तक दिड़ पर यदि सासा' बजता था तो अब 'सारे' या 'सानि' या और कोई भी दो स्वर बजेंगे। मन में आप केवल 'ए' और 'क' बोलेंगे । इस प्रकार सुनने वालों को तो 'दा ड़ा' 'दा ड़ा' सुनाई देगा, जिसमें प्रत्येक 'दा' और 'डा' पर अलग-अलग स्वर बजते रहेंगे; परन्तु बजा रहे होंगे एक, दोऽओ, तीऽन, चाऽर, आदि गिनती । चौगुन की तानें बनाना- जब इन गिनतियों का इस प्रकार खूब अभ्यास हो जाय तो बाएँ हाथ से उसी लय में दो-दो स्वर बजाते रहिये । और सीधे हाथ की मिजराब को बजाय 'दा डा' के 'दिड़ दिड' में बजाना शुरू कर दीजिये। अर्थात् आपका सीधा हाथ तेज चलना शुरू जायगा। अब आप जो गिनतियों का क्रम रखें, उसे 'ए ए क अ' 'दो ओ-श्रो ओ' 'ती ई न अ' 'चा आ र अ' इस प्रकार चार-चार भागों में बोलना शुरू कर दीजिये । यह आपकी 'ए एक अदो ओ ओ ओ' की भांति सब गिनतियाँ हो जायेंगी। अब आप दि ड़ दिड दिड दि ड़ जब भी अभ्यास करें, इन गिनतियों के आधार से ही अभ्यास करें और प्रत्येक गिनती पर पैर से ताल देना न भूलें। इस प्रकार चाहे जितने तोड़े, दिड दिड़ में, चाहे जिस ताल में, इन गिनतियों के आधार से बजा सकेंगे। यहां एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि जो चीज़ गायन में अलाप होती है, उसे ही सितारिये 'जोड़ का काम' कहते हैं। स्थाई को गति, अन्तरे को तोड़ा, अलाप को तानों को गति की आड़ी-तिरछी और तानों को फिक्रे कहा जाता है। इस प्रकार यहां तक आप अलाप (जोड़ का काम ) गति, तोड़ा और आड़ी-तिरछी करना सीख गये । अब आगे फिक्रे और तीये बनाने की युक्ति देखिये ।