पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१०१

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बारहवाँ अध्याय इच्छित राग में मध्य तथा दुतलय की गतें बनाने का ढंग जिस प्रकार आपने अब तक विलम्बित लय के लिये कुछ ढांचे देखे हैं, उसी प्रकार अब आपको द्रुतलय के भी कुछ ढांचे बताते हैं। द्रुतलय के ढांचों में 'दाड़ा दिड दा-ड़ दा-ड़ द्रा' आदि का प्रयोग होगा। जब कि अब तक केवल 'दाड़ा और दिड़' का ही प्रयोग किया गया था। यद्यपि यहाँ पर द्रुतलय के लिये कुछ ढांचे दिये जा रहे हैं, किन्तु फिर भी इनका रूप आप अपनी गतों के अनुसार चाहे जैसा बना सकते हैं। इसलिये यह कभी नहीं समझना चाहिये कि इन ढांचों के अतिरिक्त अन्य प्रकार की द्रुतगते बन ही नहीं सकतीं। एक बात यह भी ध्यान में रखने की है कि विलम्बित गति तो किसी भी ताल में बजाई जा सकती हैं, परन्तु द्रुतगति ६५ प्रतिशत तीन ताल में ही बजती हैं। कभी तीन ताल के अतिरिक्त अन्य तालों में सुनाई देती भी हैं तो वह केवल एकताल (१२ मात्रा) में ही। द्रुत गतों के लिये १२ ढांचे-- सैन वन्शीय गतों की एक बड़ी विशेषता तो आप जानते ही हैं कि उनकी बंदिशों ( ढांचों) में बोल अधिक उल्टे-सीधे होते हैं। दूसरे यह गते एक-एक. श्रावृत्ति से भी अधिक की होती हैं। उदाहरण स्वरूप कुछ ढांचे यहां दे रहे हैं:- दा दिर दा रा | दा रा दा रा वा दिर दिर दिर हा- रदा उदा अब पहिली चार मात्राओं में ही तनिक सा अन्तर करके यही बंदिश दूसरे प्रकार की हो जायेगीः- दा दा रा [दा रा दा रा दा दिर दिर दिर | दा- रदा र दा To X २ ३