५० वर्ष बीतने की कैद यहाँ भी हैं। उसका अनुवाद प्रकाशित करने के लिये पूर्वोक्त १० वर्ष तक ठहरना पड़ेगा।
किसी के लेख या पुस्तक की समालोचना करने या उसका सारांश ("News paper Summary") प्रकाशित करने की तो रोक-टोक नहीं। पर इससे दूर जाने की आज्ञा क़ानून नहीं देता। इस दशा में बिना लेखक की अनुमति के उसके लेख को अखबारों, सामयिक पुस्तकों में प्रकाशित करने, अथवा उनका अनुवाद छापने, अथवा दो चार शब्द अदल-बदल कर संस्कृत शब्दों की जगह उर्दू-फारसी के और उर्दू-फारसी के शब्दों की जगह संस्कृत शब्द रख कर उसे अपना बना लेने की चेष्टा करना भी क़ानून की दृष्टि से जुर्म है।
इस क़ानून के खिलाफ काम करने वाले पर तीन वर्ष के भीतर ही मुकद्दमा चलाने से चल सकेगा। उसके आगे नहीं। अब तक इस तरह के मुकद्दमें केवल हाईकोर्ट में होते थे। अब पहले दरजे के मैजिस्ट्रैटों को भी ऐसे मुकद्दमे सुनने का अख्तियार दे दिया गया है।
कापी-राइट का कानून तोड़ने वालों पर लेख, पुस्तक, या फोटों की फी कापी के लिए २० रुपये तक जुर्माना किपा जा सकेगा। शर्त यह है कि जुरमाने की कुल रकम ५०० रुपये से अधिक न हो। वही जुर्म, दुबारा करने वालों पर एक महीने की सादी कैद या एक हज़ार रुपये तक जुरमाने की सजा, या दोनों सजाये एक ही साथ, दी जा सकेगी।
अपील के लिये एक महीने की मुद्दत दी गई है।
लेखकों, अनुवादकों, और प्रकाशकों को सावधान हो जाना चाहिये।
[अप्रैल, १९१४