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साहित्य-सीकर


दे॰—आवश्यकता किसे कहते हैं?

ग॰—'लिया' का बहुवचन 'लिये' हुआ न? जैसा उसका उच्चारण ही 'इसलिए' के लिए' का भी।

दे—आवश्यकता का लक्षण आपने अच्छा बताया! यदि उच्चारण की अनुरूपता के आधार पर ही शब्दों के रूपान्तर लिखे जाने चाहिए तो 'लिये', 'दिये', 'किये' आदि रूप लिखना आप आज से छोड़ दीजिये। क्योंकि 'लिए', 'दिए', 'किए' आदि रूप लिखने से भी उच्चारण में भेद नहीं पड़ता। इन पिछले रूपों में 'ए' स्वर का प्रयोग होता है। और स्वर ही प्रधान वर्ण है अतएव यही रूप लिखना अधिक युक्तिसंगत है। हिन्दी, नहीं नागरी की एक बहुत बड़ी सभा ने, इसी कारण, इस विषय का एक नियम ही बना दिया है। बहुसम्मति से उसकी आज्ञा है कि जहाँ स्वर से काम निकलता है वहाँ व्यञ्जन न रखना चाहिए। वह 'दिए', 'किए', 'लिए' ही शुद्ध समझती है।

ग॰—अच्छा तो आपकी क्या राय है?

दे॰—सुनिए। 'लिया' भूतकालिक क्रिया है। उसका बहुवचन यदि 'लिये' लिखा जाय तो हर्ज नहीं, क्योंकि 'लिये' का 'लिया' से कुछ सम्बन्ध है। परन्तु 'इसलिए' तो अव्यय है। 'लिया' से यह कुछ भी सरोकार नहीं रखता। आप 'इसलिया' तो कभी लिखते ही नहीं। अतएव 'इसलिये' न लिखकर आप आज से 'इसलिए' ही लिखा कीजिए।

ग॰—अच्छा 'चाहिये' लिखा करूँ या 'चाहिए'।

दे॰—यदि 'लिया' की तरह आप कभी 'चाहिया' भी लिखते हों तो खुशी से 'चाहिये' लिखा कीजिए; अन्यथा 'चाहिए'। जो कुछ मैंने ऊपर कहा उस पर यदि आपने ध्यान दिया होता तो ऐसा प्रश्न ही आप न करते।