छोटे-छोटे लेखकों तक को इतनी काफी आमदनी हो जाती है कि उन्हें दूसरा रोज़गार नहीं करना पड़ता। अच्छे लेखकों की तो बात ही जुदा है। वे तो थोड़े ही दिनो में अच्छे खासे मालदार हो जाते हैं। अँगरेजी साहित्य के उन्नत दशा में होने का यही मुख्य कारण है। एक साहब ने अँगरेजी साहित्य के आर्थिक पक्ष को लेकर लेख लिखा है। उसमें से मुख्य-मुख्य दो चार बातें हम यहाँ पर लिखते हैं।
इँगलैंड के समालोचकों का यह स्वभाव सा हो गया है कि वे नये ग्रन्थकारों की पुस्तकों की बड़ी कड़ी समालोचनायें करते हैं और पुराने तथा प्रसिद्ध लेखकों को प्रसन्न रखने की चेष्टा किया करते हैं। अँगरेज बड़े ही साहित्य प्रेमी हैं। इसका प्रमाण यह है कि नई पुस्तकें खूब मँहगी होने पर भी बहुत बिकती हैं। और एक-एक पुरानी पुस्तक के सैकड़ों सस्ते से सस्ते संस्करण छपते हैं। जो चीज़ अँगरेजों को पसन्द आ गई उसके लिये खर्च करने में वे बड़ी दरिया दिली दिखलाते हैं। वे आश्चर्यजनक मनोरञ्जक और शिक्षाप्रद बातें बहुत पसन्द करते हैं। इसी से वे खेल-तमाशा, शिकार, अगम्य देशों की यात्रा और जीनचरित्र सम्बन्धी पुस्तकों के बड़े शौकीन हैं।
इँगलेंड में ऐसे बहुत से पुस्तकालय हैं जो नियत चन्दा देने पर अपने मेम्बरों को पुस्तकें पढ़ने को देते हैं। कैसी मँहगी कोई पुस्तक क्यों न हो, ये उसकी हजारों कापियाँ लेने का ठेका, छप जाने से पहले ही लेते हैं। इससे पुस्तकें खूब मँहगी हो जाती हैं। अकेले 'टाइम्स' के पुस्तकालय के ८०,००० चन्दा देने वाले मेम्बर हैं। इँगलैंड के वर्तमान प्रसिद्ध उपन्यास लेखकों में से किसी का उपन्यास ज्यों ही छपा त्यों ही अपने मेम्बरों के लिए बारह हज़ार कापियाँ वा तुरन्त ले लेता है। हमारे पाठकों को मालूम है कि महारानी विक्टोरिया के पत्र हाल ही में पुस्तकाकार प्रकाशित हुए हैं। यह हद