म्यूर साहब की संस्कृतज्ञता और योग्यता की गवाही दी है। अपनी न्याय कौमुदी की अँगरेजी-भूमिका में उन्होंने लिखा है—
"Mr. Muir delivered lectures, in Sanskrit. on Morai and intellectual philosophy, and the sentiments which he then inclucated have often, since that time furnished topics for discussion in the College"
म्यूर साहब जब संस्कृत में लेकचर दे सकते थे तब वे अवश्य ही अच्छी तरह संस्कृत बोल लेते रहे होंगे। यह उनकी संस्कृतज्ञता और सम्भाषणशक्ति का प्रमाण हुआ। यह बात तो डाक्टर टीवो और वीनिस साहब आदि संस्कृत विद्वानों में पाई जाती है। म्यूर साहब में एक और विशेषता थी। वे संस्कृत लिखते भी थे। गद्य ही नहीं, पद्य भी। उनकी लिखी हुई मत परीक्षा नामक एक बहुत बड़ी पुस्तक संस्कृत पद्य में हैं। उससे दो चार श्लोक हम नीचे उद्धृत करते हैं—
यः पूर्वभूतवृत्तान्तः पारम्पर्येण लभ्यते।
स जातुः प्रत्ययाहोऽस्ति जातु नास्तीति बुध्यते॥
वृत्तान्तः कश्चिदेको हि सप्रमाणः प्रतीयते!
प्रमाणवर्जितोऽन्यस्तु प्रतितभाति परीक्षणात्॥
अतोऽमुका पुरावृत्तकथा विश्वासमर्हति।
न वेत्वतदिवेकाय तद्विशेपो विचार्यताम॥
असो कया कद्वा कुत्र कस्थ वक्त्रादजायत।
श्रोतारश्चादिमास्तस्याः कीदृशाः कति चाभवन्॥
इन पद्यों की रचना कह रही है कि ये म्यूर साहब ही के लिखे हुये। अतएव इसमें सन्देह नहीं कि वे संस्कृत बोल भी सकते थे और लिख भी सकते थे।