गणित-शास्त्र का ज्ञान था। अंकगणित में दशमलव की रीति का आविष्कार उन्होंने किया। बीज-गणित में वर्ग समीकरण को हल करने की रीति का अनुकरण परिश्रमवालों ने भारतीयों ही से सीखा। हाँ, उसमें कुछ फेरफार उन्होंने जरूर कर लिया है। त्रिकोणमिति में आर्यों ने अच्छी उन्नति की थी। उनको अनेक प्रकार के कोणों का ज्ञान था। भारत में इस शास्त्र की उत्पत्ति नावों के कारण हुई। भारत-निवासियों को यज्ञ से बड़ा प्रेम था। इसी निमित्त उन्हें यज्ञवेदी बनानी पड़ती थी। वेदियाँ प्रायः पक्की ईटों से बनाई जाती थीं इसलिए उन्हें ईंटों और वेदी की भूमि को नापने की जरूरत पड़ती थी। इसी से इनको रेखा गणित-सम्बन्धिनी भिन्न भिन्न आकृतियों का ज्ञान हुआ। यज्ञों के लिए उन्हें समय ज्ञान की भी जरूरत पड़ती थी। इससे ज्योतिष-शास्त्र का उदय हुआ। ग्रीक तथा अन्य विदेशी जातियों के सम्पर्क से उन्हें इस शास्त्र के अध्ययन में और भी सहायता मिली। धीरे-धीरे उन्होंने इस शास्त्र से सम्बन्ध रखने वाली कितनी ही नई-नई बातें खोज निकाली। उन्होंने पृथ्वी की दैनिक गति का पता लगाया। ज्योतिष सम्बन्धी बड़े उपयोगी यन्त्रों का आविष्कार भी उन्होंने किया।
यह तो निरीक्षण-प्रधान शास्त्रों की बात हुई। अब प्रयोग-प्रधान शास्त्रों को लीजिए। आर्यों के आयुर्वेद को देखिए, सब बात स्पष्ट समझ में आ जायगी। इस शास्त्र का ज्ञान केवल निरीक्षण से साध्य नहीं। इसके लिए बड़ी दूरदर्शिता के साथ प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती हैं। आर्यों ने असंख्य जंगली जड़ी बूटियों के गुण दोषों का ज्ञान प्राप्त किया। इसके लिए उन्हें हिमालय जैसे अलंघ्य पर्वतों पर भी घूमना पड़ा। उन्होंने इस बात की गहरी खोज की कि किसी वनस्पति का कोई दोष अन्य वनस्पति के योग से दूर किया जा सकता है। इस निमित्त उन्होंने सैकड़ों वनस्पतियों के गुण दोषों की परीक्षा