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साहित्य-सीकर

करने की चेष्टा करता हूँ।

अर्थ-शास्त्र

सबके पहले मैं अर्थ-शास्त्र ही को लेता हूँ क्योंकि कितने ही लोग कहते हैं कि यह शास्त्र आधुनिक है। योरप के निवासी इसके जन्मदाता कहे जाते हैं। कोई दो ही सदियों में उन्होंने इसमें आश्चर्यजनक उन्नति कर दिखाई है।

भारत में शास्त्रों के मुख्य चार भाग किये गये हैं। (१) धर्म, (२) अर्थ, (३) काम और (४) मोक्ष। इनमें पहले तीन का सम्बन्ध सांसारिक बातो से है और अन्तिम का धार्मिक बातों से। पहले तीनों में से सम्पत्ति शास्त्र का सम्बन्ध सांसारिक बातों से बहुत अधिक है। संस्कृत-साहित्य में इस विषय पर बहुत बड़ा ग्रन्थ विद्यमान है। वह है कौटिल्य का अर्थशास्त्र। ईसा के पहले चौथी सदी में कौटिल्य ने उसकी रचना की। उसमें उसने अपने पूर्ववर्ती सम्पत्ति-शास्त्र के १० शाखा भेदों का उल्लेख किया है। इसी एक बात से यह ज्ञात हो सकता है कि इतने प्राचीन समय में भी भारत निवासी अच्छे राजनीतिज्ञ और सम्पत्ति-शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। कौटिल्य ने अपने सम्पत्ति-शास्त्र में (१) राजनैतिक सम्पत्तिशास्त्र, (२) राजनैतिक तत्वज्ञान, (३) साधारण राजनीति, (४) युद्ध-कला, (५) सेना-सङ्गठन, (६) शासन-कला, (७) न्याय-शासन, (८) कोष (९) वाणिज्य-व्यवसाय और (१०) कल कारखानों तथा खानों आदि के प्रबन्ध का विवेचन किया है। इसे थोड़े में यों कह सकते हैं कि राज्य-प्रबंध के लिये सभी आवश्यक विषयों के समावेश उसमें हैं। गृह-प्रबंध-विषयक सम्पत्तिशास्त्र पर भी वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र के चौथे भाग में बहुत कुछ लिखा है। उस भाग का नाम है—भार्याधिकरण। उसे देखते ही ज्ञात हो जाता है कि प्राचीन समय में हमारे यहाँ गृह-प्रबंध कैसे होता था। उसमें गृह-पत्नी की व्याख्या दी गई है। चीज़ों की सँभाल किस तरह करनी चाहिये,