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संस्कृत-साहित्य का महत्त्व


अँगरेज़ी के सिवा यूरोप की अन्य भाषाओं का साहित्य शृङ्खला-बद्ध नहीं। कहीं-कहीं उसका सिलसिला टूट गया है। पर अँगरेज़ी साहित्य इँगलैंड के आदि कवि चासर से लेकर आज तक—५०० वर्षों तक—रत्ती भर भी विशृड़्खल नहीं। इसी से टेन नाम का एक फ्रांस निवासी लेखक अँगरेजी साहित्य पर लट्टू हो गया है। सिर्फ ५०० वर्षों की अखण्डित शृङ्खला पर टेन महाशय इतना आश्चर्य करते हैं। यदि वे यह जानते कि संस्कृत साहित्य का सिलसिला उससे कई गुना अधिक समय से बराबर चला आ रहा है तो न मालूम उनके आश्चर्य का पारा कितनी डिग्री चढ़ जाता। सुनिये, हमारा संस्कृत साहित्य ईसा के कोई १५०० वर्ष पहले से, आज तक शृङ्खला-बद्ध है। अर्थात् संस्कृत साहित्य, अँगरेज़ी-साहित्य की अपेक्षा सात गुने समय से शृङ्खला-बद्ध है। हाँ, अध्यापक मैक्समूलर अलबत्ता कहते हैं कि कोई सात सौ वर्षों तक संस्कृत साहित्य सूना दिखाई देता है; उसकी शृङ्खला टूटी हुई दृष्टि पड़ती है। ईसा के पहले चौथी सदी से ईसा की चौथी सदी तक—बौद्ध धर्म के उदयकाल से गुप्त राजों के उदयकाल तक—वे उसे खण्डित कहते हैं। इन सात शतकों में लिखे गये जितने शिला-लेख पाये गये हैं व ऐसी भाषा में हैं जिसे प्राकृत के रूप में संस्कृत कह सकते हैं। वे चौथी सदी के बाद से संस्कृत का पुनरूजीवन मानते हैं।

परन्तु भाषा-सम्बन्धी परिवर्त्तन के कारण ही अध्यापक मैक्समूलर को यह भ्रम हुआ है। उनकी इस सम्मति का आदर विद्वानों ने नहीं किया। क्योंकि पूर्वोक्त अवधि में लिखे गये कितने ही ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं। ईसा के पहले दूसरी सदी में—पुष्यमित्र के राजत्वकाल में पतञ्जलि ने अपना महाभाष्य लिखा। चन्द्रगुप्त मौर्य सिकन्दर का समकालीन था। उसी चन्द्रगुप्त के मन्त्री, कौटिल्य (चाणक्य) ने अर्थशास्त्र की रचना की। प्रसिद्ध नाटककार भास की ख्याति कालिदास से कम