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साहित्य-सीकर


"The education of a Hindu gentleman can never be said to be complete without a thorough mastery of Sanskrit-lauguage and literature."

अर्थात् संस्कृत भाषा और संस्कृत-साहित्य का पूरा ज्ञान प्राप्त किये बिना किसी भी हिन्दू की शिक्षा पूरी नहीं होती। उसे अधूरी ही समझना चाहिये।


उस समय संस्कृत के हस्तलिखित ग्रंथों और शिला-लेखों की खोज का काम आरम्भ ही हुआ था। इन गत पचास-साठ वर्षों की खोज से संस्कृत साहित्य-सम्बन्धिनी मार्के की बातों का पता चल गया है। अब कोई यह नहीं कह सकता कि संस्कृत-साहित्य में धर्म ग्रंथों के सिवा और है क्या? अब तो यूरोप और अमेरिका तक के विद्वान् यह मानने लगे हैं कि संस्कृत में सैकड़ों व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ भी हैं। खोज अब तक जारी है। कोई तीस वर्षो से मैं इस खोज का काम कर रहा हूँ। पर इतने ही से मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि संस्कृत साहित्य भारत की प्राचीनता के भिन्न-भिन्न स्वरूपों का प्रतिबिम्ब है। उसके अध्ययन से यह ज्ञान हो सकता है कि प्राचीन भारत-निवासी विद्या में कितने बढ़े-चढ़े थे, जीवनोपयोगिनी कितनी आवश्यक सामग्री उनके पास थी—कितनी बातें उन्हें मालूम थीं। अहा! सर रिचर्ड टेम्पल यदि इस समय जीवित होते तो वे अपने वाक्य से जरूर 'हिन्दू' शब्द निकाल देते। क्योंकि अब संस्कृत साहित्य का महत्व इतनी दृढ़ता से सिद्ध किया जा चुका है कि उसका पूर्ण अध्ययन किये बिना किसी भी मनुष्य की शिक्षा पूर्ण नहीं कही जा सकती। यदि मेरे वे पूर्वोक्त भारतीय मित्र आज विद्यमान होते देख लेते के संस्कृत-साहित्य भी अँगरेजी ही के सदृश मनुष्य की आँख खोल सकता है। इस समय उन्हें अपनी पहली सम्मति पश्चात्ताप पूर्वक वापस लेनी पड़ती।