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२१—कबायद-परेड की पुस्तकों में
रोमन-लिपि

उस साल कानपुर में जो साहित्य-सम्मेलन हुआ था उसकी याद कीजिये। उस सम्मेलन की स्वागत-समिति के सभापति का भाषण, सम्मेलन में पुस्तकाकार बाँटा गया था। उसकी कापियाँ सम्मेलन- कार्य्यालय, इलाहाबाद से अब भी मिल सकती हैं। उसमें हिन्दी हितैषियों का ध्यान रोमन-लिपि के आक्रमण की ओर आकृष्ट किया गया था और लिखा गया था कि उस लिपि से देवनागरी लिपि को भय हो रहा है। लेखक का वह सन्देह सच निकला। यों तो और भी कई लोगों ने इस देश में रोमन-लिपि के प्रचार की कोशिश की है और उससे होने वाले अनेक काल्पनिक लाभों का उल्लेख किया है, पर उनकी चेष्टायें फलीभूत नहीं हुईं। परन्तु अब तो स्वयं सरकार ने उसे अपनाने का सूत्रपात कर दिया है। इस सूत्रपात की खबर शायद अब तक हिन्दी के हितचिन्तकों, हिन्दी की सभाओं और हिन्दी के समाचार-पत्रों के सम्पादकों को नहीं। होती तो इस विषय की कुछ न कुछ चर्चा वे लोग अवश्य ही करते। परन्तु इस विषय की कहीं की भी गई, कुछ भी चर्चा, इस नोट के लेखक की दृष्टि में नहीं आई।

सरकार का शासन और सरकार का खर्च प्रजा से प्राप्त हुये रुपये ही की बदौलत चलता है। इस दशा में उसके द्वारा प्रकाशित लेखों, पुस्तकों, कानूनों, विज्ञप्तियों और गैजटों आदि का अनुवाद, देशी-भाषाओं में, करने का अधिकार सर्व-साधारण को होना ही चाहिये। और यह अधिकार, अनेकांश में, उसे अब तक था भी। पर कुछ समय हुआ, सरकार ने एक मंतव्य, अपने गैजट आव् इंडिया में, प्रकाशित करके इस अधिकार में बहुत कुछ कतर-व्योंत कर दिया। अब कुछ ही कागज-पत्रों और पुस्तकों को छोड़ कर और चीज़ों का