बाँकीपुर में एक नामी पुस्तकालय है। उसका नाम है खुदाबख्श-लाइब्रेरी। १९०३ ईसवी तक उसे बहुत कम लोग जानते थे। परन्तु पूर्वोक्त वर्ष लार्ड कर्ज़न ने उसका मुलाहजा किया तब से गवर्नमेंट के अनेक बड़े-बड़े अफसर उसे देखने के लिए आने लगे। फ़ल यह हुआ कि इस पुस्तकालय की प्रसिद्धि हो गई। बात यह है कि हम लोग अपनी आँखों देखना नहीं जानते। जब और कोई हमें कोई चीज़ दिखा देता है और उसके गुण बता देता है तब हम लोगों ने इस पुस्तकालय को पहचाना। अब तो इसका नाम देश देशान्तरों तक में हो गया है। इस पुस्तकालय में कुछ पुस्तकें—हस्त-लिखित—ऐसी भी हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं। लन्दन, बर्लिन, पेरिस, न्यूयार्क और सेन्ट पिटर्सवर्ग में भी उनकी कापियाँ नहीं।
गत एप्रिल में बाँकीपुर से "एक्सप्रेस" नामक अँगरेज़ी भाषा के समाचार पत्र ने अपना एक विशेष अङ्क निकाला। उसमें इस पुस्तकालय पर एक सचित्र लेख है। उसी से लेकर, कुछ बातें इसकी पुस्तकों के सम्बन्ध की, नीचे लिखी जाती हैं।
इनमें जो पुस्तकें हैं वे खुदाबख्श नामक एक पुस्तक प्रेमी विद्वान् की एकत्र की हुई हैं। उनको पुस्तकें एकत्र करने का व्यसन सा था। मरते दम तक उन्होंने दूर-दूर से पुस्तक मँगाकर और हज़ारों रुपया