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चीन के अख़बार

बिना विचार के जेल में ठूँस न दिये जाने का अधिकार भी चाहते हैं। परन्तु गवर्नमेंट उनकी इन प्रार्थनाओं पर ध्यान नहीं देती और उनको अपने पञ्जे में दबाये रखना चाहती है। बड़ी लज्जा की बात है। कि पूर्वोक्त अधिकारों से केवल चीनी-पत्र ही वञ्चित रक्खे जाते हैं, विदेशी लोगों के पत्र स्वच्छन्दतापूर्वक उनका उपभोग कहते हैं। चीनी गवर्नमेंट ने अखबारों के लिए एक नया कानून बनाया है। उसकी रू से पत्रों के प्रकाशक, सम्पादक और मुद्रक वही हो सकते हैं जिनकी अवस्था बीस वर्ष से अधिक हो, होश हवाश दुरुस्त हों और सजायाफ़्ता न हों। अङ्कशास्त्र, चित्रकारी और शिक्षा-सम्बन्धी पत्रों को छोड़कर प्रत्येक पत्र के लिए उसके सञ्चालकों को सवा दो रुपये की जमानत देनी पड़ती है। प्रत्येक अङ्क की एक कापी स्थानिक मैजिस्ट्रेट के पास और दूसरी पेकिन के किसी उच्च राज-कर्मचारी के पास भेजी जाती हैं।

जो पत्र सरकारी गुप्त भेदों को प्रकाशित करते हैं उन्हें बड़ी कड़ी सजा दी जाती है। राज-विरुद्ध, शान्ति-भंगकारी अथवा रस्म-रिवाज के विरुद्ध लेख लिखने वालों को छः महीने से लेकर दो वर्ष तक का जेल दिया जाता है। राजनैतिक दाँव पेंच की बातें प्रकाशित करनेवाले पत्र कभी-कभी कुछ दिन के लिए बन्द भी कर दिये जाते हैं।

पत्र सम्बन्धी कानून पर बड़ी सख्ती से अमल किया जाता है। कुछ दिन हुए टांकाई नामक एक विख्यात अखबार वाले ने किसी राज-विद्रोही पत्र से एक लेख अपने पत्र में उद्धृत किया। फिर क्या था, अधिकारी-गण क्रोध से अन्धे हो गये। उन लोगों ने झट सिंग महाशय को गिरफ़्तार किया और बिना विचार के जेल में ठूँस दिया। इसी तरह पिछले साल एक अखबार वाले के इतने बेंत लगाये गये कि वह मर ही गया।