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साहित्य-सीकर

दी गई।

दैनिक समाचार पत्रों में जो कुछ रहता है उसका अधिक भाग पत्र के आफिस में नहीं तैयार किया जाता। आख्यायिकायें, उपन्यास, यात्रा-वृत्तान्त, प्रहसन, चुटकुले, दिल्लगी के चित्र आदि आदि अखबारी सिंडीकेट (Newspaper syndicate) से खरीदे जाते हैं। सिंडीकेटों में ऐसे लेखक या चित्रकार नौकर रहते हैं जिनके लेख या चित्र सर्वसाधारण खूब पसन्द करते हैं। इसके सिवा वे सुप्रसिद्ध उपन्यासकारों के उपन्यास भी खरीदते हैं। और होशियार आदमियों को अन्य देशों में भेज कर उनसे यात्रा-वृत्तान्त भी लिखवाते हैं। यात्रा-वृत्तान्त लिखने वाला एक अमेरिकन लेखक एक सिंडीकेट से सफरखर्च के सिवा डेढ़ लाख रुपये वार्षिक वेतन पाता है। बस, इसी तरह, इधर-उधर से इकट्ठा करके सिंडीकेट पूर्वोक्त लेख आदि अखबार वालों को बेंच देते हैं।

यह तो हुई शहर के अखबारों की बात। अब देहाती पत्रों का हाल सुनिये। उन लोगों को सिडीकेटों से पत्र का अधिक भाग छपा-छपाया मिल जाता है। इसके सिवा देश देशान्तरों की खबरें "समाचार-पत्र-समिति" के द्वारा मिल जाती हैं। बाकी रहीं स्थानिक खबरें, सो उनके लिए दो एक संवाददाता रख लिये जाते हैं। इस तरह उनका काम बड़े मजे में चलता है। यहाँ पर हम यह कह देना चाहते हैं कि सिंडीकेट का पत्र का जो छपा हुआ भाग बेचते हैं वह सादे कागज के मूल्य पर देते हैं इसमें उनकी कोई हानि नहीं। क्योंकि उसमें लेखो के सिवा विज्ञापन भी रहते हैं। इन विज्ञापनों से इतनी अधिक आमदनी होती है कि यदि वे उसे मुफ़्त में भी दे डाले तो भी कुछ नुकसान न हो। इसमें अखबार वालों को भी लाभ रहता है। क्योंकि उन्हें अखबार का तीन-चौथाई भाग छपा हुआ मिल जाने से छपाई नहीं लगती। अर्थात् छपाई के दाम और अधिकांश परिश्रम से