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समाचार-पत्रों का विराट् पत्र

नहीं बन्द होता। धर्म्म मर आघात, व्याघात, प्रतिघात और प्रत्याघात का शोर मचाते हुये लेख लेख लेख—लेख पर लेख, आप लिखते ही चले जाते हैं।

२१—नीति (पालिसी) आपको घोर अन्धकार में पड़े रहना; पर दूसरों को उजेले में खींच लाने के लिये जी-जान से उतारू रहना; मजमून पर मजमून लिखते जाना; भारत के गारत होने, पुराने रीति-रवाज के डूबने और अँगरेजी शिक्षा के पेड़ में कड़वे फल लगने की आठ पहर चौंसठ घड़ी पुकार मचाना; और समुद्र-यात्रा का नाम सुनते ही जाल में फँसे हुये हिरन की तरह घबरा उठना है।

२२—विद्वत्व आपका यह है जिसे दत्त, तिलक और टीवी वगैरह के, आपकी समझ के खिलाफ, कुछ कर डालने पर, आप प्रकट करते हैं। फिर चाहे आप वेद का एक मंत्र भी सही-सही न पढ़ सकें अथवा दर्शनों, पुरानों, स्मृतियों और उपनिषदों की एक सतर का भी मतलब न समझ सकें, पर आप ऐसी-ऐसी तर्कना, बितर्कना और कुतर्कनायें करते हैं और ऐसी ऐसी आलोचनायें, पर्य्यालोचनायें और समालोचनायें लिखकर इन लोगों के धुर्रे उड़ाते हैं कि आपकी पंडित प्रभा संसार के सारे संस्कृत पंडितों की आँखों में चकाचौंध पैदा कर देती हैं।

२३—अन्नदाता! आपके लुधियाना, लाहौर, अलीगढ़, मुरादाबाद और झाँसी आदि के मित्र, गुप्त और प्रसुप्त इत्यादि, प्रकट, अप्रकट और प्रकटाप्रकट नामधारी विज्ञापनबाज हैं। इन कोकशास्त्री, रतिशास्त्री और कामशास्त्री जीवों के दर्शन अन्धी खोपड़ी के आदमियों को बहुत ही दुर्लभ हैं। कई वर्ष हम मुरादाबाद में रहे और झाँसी में भी हमने अनेक चक्कर लगाये; परन्तु इन पुण्यात्माओं का दर्शन हमें नसीब न हुआ।

२४—जीवनी शक्ति आपकी सैकड़ों तरह के ताम्बूल-बिहार के;