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साहित्य-सीकर

कुछ समय से इंडियन प्रेस ने भी पुस्तक प्रकाशन काम जारी किया है। हिन्दी-लेखकों के लिये यह बहुत ही शुभ अवसर है। इंडियन प्रेस का काम कैसा है, उसका नाम कैसा है, उसका प्रबन्ध कैसा है—इस विषय में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। अकेली "सरस्वती" या अकेला "रामचरितमानस" ही इन बातों की उत्कृष्ट सरटीफिकेट है। हाँ, इतना हम जरूर कह देना चाहते हैं कि सब विषयों में विशेषता होने ही के कारण इन प्रांतों की गवर्नमेंट ने, अनेक देशी और विदेशी पुस्तक-प्रकाशकों के साथ प्रतियोगिता में, इंडियन प्रेस ही को श्रेष्ठता दी है और उसी की पाठ्यपुस्तकें अपर और लोअर प्राइमरी स्कूलों में जारी करने के लिये मंजूर की हैं।

प्रकाशक अच्छा होने से ग्रन्थ और ग्रन्थकार दोनों की अधिक कदर होती है। इससे ग्रन्थकार की विशेष यशोवृद्धि होती है। जो अच्छे लेखक हैं वे अच्छे ही प्रकाशकों को अपनी पुस्तकें देते हैं औरों के लिए लिखना वे अपने विरद के विरुद्ध समझते हैं। उत्तरी ध्रुव अथवा विकास-सिद्धान्त पर लेख लिखने के लिए चाहे कोई कोई बरसों विज्ञापन दिया करें और चाहे वह जितने पदक देने का लालच दिखावें कोई उसके लिये कलम न उठावेगा। मतलब यह कि अच्छा प्रकाशक अच्छे ग्रन्थकारों को बड़े भाग्य से मिलता है! यदि ऐसे प्रकाशक से कुछ लाभ की भी आशा हो तो फिर सोने में सुगन्ध समझना चाहिये।

इंडियन प्रेस प्रयाग, ने धार्मिक सामाजिक, ऐतिहासिक, औपन्यासिक, वैज्ञानिक—सभी विषयों पर पुस्तक प्रकाशन करने की घोषणा की है। यही नहीं, किन्तु संस्कृत-ग्रन्थों के अनुवाद प्रकाशित करने का भी संकल्प उसने किया है। परन्तु पुस्तकें उपयोगी होनी चाहिएँ। हिन्दी लेखकों के ग्रंथ प्रकाशन मार्ग में जो बाधाएँ थीं उन्हें इस प्रेस के परमोत्साही, और बङ्गवासी होकर भी हिन्दी के हितैषी, स्वामी ने एकदम दूर कर दिया। अब भी उनके इस औदार्य्य से यदि